Saturday, 24 December 2016

एक नगर के राजा ने यह घोषणा करवा दी कि कल जब मेरे महल का मुख्य दरवाज़ा खोला जायेगा..

तब जिस व्यक्ति ने जिस वस्तु को हाथ लगा दिया वह वस्तु उसकी हो जाएगी..

इस घोषणा को सुनकर सब लोग आपस में बातचीत करने लगे कि मैं अमुक वस्तु को हाथ लगाऊंगा..

कुछ लोग कहने लगे मैं तो स्वर्ण को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग कहने लगे कि मैं कीमती जेवरात को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग घोड़ों के शौक़ीन थे और कहने लगे कि मैं तो घोड़ों को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग हाथीयों को हाथ लगाने की बात कर रहे थे, कुछ लोग कह रहे थे कि मैं दुधारू गौओं को हाथ लगाऊंगा..

कल्पना कीजिये कैसा
अद्भुत दृश्य होगा वह !!

उसी वक्त महल का मुख्य दरवाजा खुला और सब लोग अपनी अपनी मनपसंद वस्तु को हाथ लगाने दौड़े..

सबको इस बात की जल्दी थी कि पहले मैं अपनी मनपसंद वस्तु को हाथ लगा दूँ ताकि वह वस्तु हमेशा के लिए मेरी हो जाएँ और सबके मन में यह डर भी था कि कहीं मुझ से पहले कोई दूसरा मेरी मनपसंद वस्तु को हाथ ना लगा दे..

राजा अपने सिंघासन पर बैठा सबको देख रहा था और अपने आस-पास हो रही भाग दौड़ को देखकर मुस्कुरा रहा था..

उसी समय उस भीड़ में से एक छोटी सी लड़की आई और राजा की तरफ बढ़ने लगी..

राजा उस लड़की को देखकर सोच में पढ़ गया और फिर विचार करने लगा कि यह लड़की बहुत छोटी है शायद यह मुझसे कुछ पूछने आ रही है..

वह लड़की धीरे धीरे चलती हुई राजा के पास पहुंची और उसने अपने नन्हे हाथों से राजा को हाथ लगा दिया..

राजा को हाथ लगाते ही राजा उस लड़की का हो गया और राजा की प्रत्येक वस्तु भी उस लड़की की हो गयी..
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जिस प्रकार उन लोगों को राजा ने मौका दिया था और उन लोगों ने गलती की..

ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी हमे हर रोज मौका देता है और हम हर रोज गलती करते है..

हम ईश्वर को पाने की बजाएँ
ईश्वर की बनाई हुई संसारी वस्तुओं
की कामना करते है और
उन्हें प्राप्त करने के लिए यत्न करते है

पर हम कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि यदि ईश्वर हमारे हो गए तो उनकी बनाई हुई प्रत्येक वस्तु भी हमारी हो जाएगी..

ईश्वर को चाहना और
ईश्वर से चाहना..
दोनों में बहुत अंतर है
  • किसी का दिल दुखाने वाली बात न कहें , वक्त बीत जाता है, बातें याद रहती हैं ।
  • लंबी जबान और लंबा धागा हमेशा उलझ जाता हैं ।
  • बुरे विचार उस हृदय में प्रवेश नहीं कर सकते जिसके द्वार पर ईश्वरीय- विचार के पहरेदार खड़े हों ।
  • दुनियां आपके ' उदाहरण ' से बदलेगी आपकी ' राय ' से नहीं।
  • इंसान की सबसे बड़ी सम्पत्ति उसका मनोबल है ।
  • सफलता का चिराग परिश्रम से जलता है ।
  • ऐसा जीवन जियो कि अगर कोई आपकी बुराई भी करे तो लोग उस पर विश्वास न करें ।
  • कमजोर तब रूकते हैं जब वे थक जाते हैं और विजेता तब रूकते हैं जब वे जीत जाते हैं ।
  • अहंकार से जिस व्यक्ति का मन मैला है, करोड़ो की भीड़ में भी वो सदा अकेले रहते है ।
  • हमारी समस्या का समाधान किसी के पास नहीं है, सिवाय हमारे ।
  • काम में ईश्वर का साथ मांगो लेकिन ईश्वर ये काम कर दे, ऐसा मत मांगो ।
  • जिस हाथ से अच्छा कार्य हो , वह हाथ तीर्थ है ।
  • अच्छा दिल संबंधों को जीत सकता है पर अच्छा स्वभाव उसे आजीवन निभा सकता है ।
  • अगर मैं सुखी होना चाहता हूं तो कोई मुझे दुखी नहीं कर सकता ।
  • गलतियां क्षमा की जा सकती हैं अगर आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो ।
  • ईमानदारी बरगद के पेड़ के समान है जो देर से बढ़ती है किन्तु चिरस्थायी रहती है ।
  • यदि कोई व्यक्ति आपको गुस्सा दिलाने में सफल होता हैं तो यकीनन आप उसकी हाथ की कठपुतली हैं ।
  • जिसके पास उम्मीद हैं वह लाख बार हार के भी नहीं हारता ।
  • कुछ देने के लिए दिल बड़ा होना चाहिए, हैसियत नहीं ।
  • घर बड़ा हो या छोटा , अगर मिठास न हो तो इंसान तो क्या , चीटिंयां भी नहीं आती ।
  • इस जन्म का पैसा अगले जन्म में काम नहीं आता लेकिन पुण्य जन्मों -जन्म तक काम आता है ।
  • जो ' प्राप्त ' हैं वो ही ' पर्याप्त ' हैं इन दो शब्दों में सुख बे हिसाब हैं ।
  • वह अच्छाई जो बुरा करने वाले को मदद करें , अच्छाई नहीं होती हैं ।
          जिस दिन आपको लगे कि.....
    पूरी दुनिया आपके सामने आपके खिलाफ खडी हे।

उस समय दुनिया की तरफ पीठ घुमाओ और एक सेल्फ़ि निकालो
      पूरी दुनिया आपके साथ होंगी।

 नहीं मांगता ऐ खुदा की जिंदगी सौ साल की दे, 
दे भले चंद लम्हों की लेकिन कमाल की दे !!

कडवा सच- जो अंदर से मर जाते है ना,
वही दूसरो को जीना सिखाते है !!

कहानी‬ खत्म हो तो कुछ ऐसे खत्म हो, 
की लोग रोने लगे, ‪तालियाँ‬ बजाते बजाते !!
 
मैं किसी से बेहतर करु, क्या फर्क पड़ता है,
मै किसी का बेहतर करू, बहुत फर्क पड़ता है !!
  1. गरीब दूर तक चलता है..... खाना खाने के लिए......।
  2. अमीर मीलों चलता है..... खाना पचाने के लिए......।
  3. किसी के पास खाने के लिए..... एक वक्त की रोटी नहीं है.....
  4. किसी के पास खाने के लिए..... वक्त नहीं है.....।
  5. कोई लाचार है.... इसलिए बीमार है....।
  6. कोई बीमार है.... इसलिए लाचार है....।
  7. कोई अपनों के लिए.... रोटी छोड़ देता है...।
  8. कोई रोटी के लिए..... अपनों को छोड़ देते है....।
  9. ये दुनिया भी कितनी निराळी है। कभी वक्त मिले तो सोचना....
  10. कभी छोटी सी चोट लगने पर रोते थे.... आज दिल टूट जाने पर भी संभल जाते है।
  11. पहले हम दोस्तों के साथ रहते थे... आज दोस्तों की यादों में रहते है...।
  12. पहले लड़ना मनाना रोज का काम था.... आज एक बार लड़ते है, तो रिश्ते खो जाते है।
  13. जिंदगी बहुत कम है, प्यार से जियो
  14. सच में जिन्दगी ने बहुत कुछ सीखा दिया, जाने कब हमकों इतना बड़ा बना दिया।
कमजोर बदला लेते हैं
शक्तिशाली माफ करते हैं
समझदार भूला देते हैं ।
 आज हम शक्तिशाली औऱ समझदार बन
 सबकी गल्तियो को माफ करें भूला दे ।
पहुँच
अपनी " पहुँच " सिर्फ ऊपर तक मत रखो लेकिन
 " ऊपर वाले "  तक रखो क्योंकि
 ऊपर तक की पहुँच से अक्सर समय पर मदद नही मिलती
  लेकिन ऊपर वाले तक की पहुँच से सदा मदद मिलती हैं ।
विचार
स्पीड ब्रेकर कितना भी बड़ा हो गति धीमी करने से झटका नहीं लगता 
उसी तरह मुसीबत कितनी भी बड़ी हो
शांति से विचार करने पर जीवन में झटके नही लगते. . .
 
चलते रहिए मुस्कराते रहिये
 दौड़ story

एक दस वर्षीय लड़का रोज अपने पिता के साथ पास की पहाड़ी पर सैर को जाता था।

एक दिन लड़के ने कहा, “पिताजी चलिए आज हम दौड़ लगाते हैं, जो पहले चोटी पे लगी उस झंडी को छू लेगा वो रेस जीत जाएगा!”

पिताजी तैयार हो गए।

दूरी काफी थी, दोनों ने धीरे-धीरे दौड़ना शुरू किया।

कुछ देर दौड़ने के बाद पिताजी अचानक ही रुक गए।

“क्या हुआ पापा, आप अचानक रुक क्यों गए, आपने अभी से हार मान ली क्या?”, लड़का मुस्कुराते हुए बोला।

“नहीं-नहीं, मेरे जूते में कुछ कंकड़ पड़ गए हैं, बस उन्ही को निकालने के लिए रुका हूँ।”, पिताजी बोले।

लड़का बोला, “अरे, कंकड़ तो मेरे भी जूतों में पड़े हैं, पर अगर मैं रुक गया तो रेस हार जाऊँगा…”, और ये कहता हुआ वह तेजी से आगे भागा।

पिताजी भी कंकड़ निकाल कर आगे बढे, लड़का बहुत आगे निकल चुका था, पर अब उसे  पाँव में दर्द का एहसास हो रहा था, और उसकी गति भी घटती जा रही थी। धीरे-धीरे पिताजी भी उसके करीब आने लगे थे।

लड़के के पैरों में तकलीफ देख पिताजी पीछे से चिल्लाये,” क्यों नहीं तुम भी अपने कंकड़ निकाल लेते हो?”

“मेरे पास इसके लिए टाइम नहीं है !”, लड़का बोला और दौड़ता रहा।

कुछ ही देर में पिताजी उससे आगे निकल गए।

चुभते कंकडों की वजह से लड़के की तकलीफ बहुत बढ़ चुकी थी और अब उससे चला नहीं जा रहा था, वह रुकते-रुकते चीखा, “पापा, अब मैं और नहीं दौड़ सकता!”

पिताजी जल्दी से दौड़कर वापस आये और अपने बेटे के जूते खोले, देखा तो पाँव से खून निकल रहा था। वे  झटपट उसे घर ले गए और मरहम-पट्टी की।

जब दर्द कुछ कम हो गया तो उन्होंने ने समझाया,” बेटे, मैंने आपसे कहा था न कि पहले अपने कंकडों को निकाल लो फिर दौड़ो।”

“मैंने सोचा मैं रुकुंगा तो रेस हार जाऊँगा !”,बेटा बोला।

“ ऐसा नही है बेटा, अगर हमारी लाइफ में कोई प्रॉब्लम आती है तो हमे उसे ये कह कर टालना नहीं चाहिए कि अभी हमारे पास समय नहीं है। दरअसल होता क्या है, जब हम किसी समस्या की अनदेखी करते हैं तो वो धीरे-धीरे और बड़ी होती जाती है और अंततः हमें जितना नुक्सान पहुंचा सकती थी उससे कहीं अधिक नुक्सान पहुंचा देती है। तुम्हे पत्थर निकालने में मुश्किल से 1 मिनट का समय लगता पर अब उस 1 मिनट के बदले तुम्हे 1 हफ्ते तक दर्द सहना होगा। “ पिताजी ने अपनी बात पूरी की।

MORAL:

💥 FRIENDS, हमारी LIFE ऐसे तमाम कंकडों से भरी हुई है, कभी हम अपने FINANCE को लेकर परेशान होते हैं तो कभी हमारे रिश्तों में कडवाहट आ जाती है तो कभी हम साथ करने वाले COLLEAGUES से समस्या होती है।

शुरू में ये समस्याएं छोटी जान पड़ती है और हम इन पर बात करने या इनका समाधान खोजने से बचते हैं, पर धीरे-धीरे इनका रूप बड़ा हो जाता है… कोई उधार जिसे हम हज़ार रुपये देकर चुका सकते थे उसके लिए अब 5000 रूपये चाहिए होते हैं… रिश्ते की जिस कड़वाहट को हम एक सॉरी से दूर कर सकते थे वो अब टूटने की कगार पर आ जाता है और एक छोटी सी मीटिंग से हम अपने कलीग से जो CONFUSION ख़त्म कर सकते थे वो work PLACE POLITICS में बदल जाता है।

समस्याओं को तभी पकडिये जब
 वो छोटी हैं वर्ना देरी करने पर वे उन कंकडों की तरह आपका भी खून बहा सकती हैं।
❤ गलतियों की पाठशाला ❤

   मन द्वारा संकल्प 

आज से हम अपने से हुई गलती को स्वीकार कर गलती से सीखेंगें व प्रभावित हुए व्यक्ति से हमें क्षमा करने के लिए कह आत्म विश्वास बढ़ाएंगें।

 बुद्धि द्वारा पुरुषार्थ 

हम अपनी गलतियों के कारण ही कठिनाई में पड़ते हैं। गलती यदि बड़ी हो तो यह जीवन में बुरे दौर व नुकसान का कारण भी बन सकती है। एकाग्रता हमें हर तरह की गलती से बचाती है।

दूसरों की गलतियों की ओर देखने से पहले हमें अपने से हुई गलतियों पर नजर डालनी चाहिए व सुधार करना चाहिए। हम यह स्वीकार करें कि कोई भी व्यक्ति सदैव सही नही हो सकता।

जो दूसरों की गलती व अनुभव से सीखता है वह बुद्धिमान है, बजाए इसके कि हम गलती करके सीखें। वैसे गलती करके सीखना भी बुरा नही, परन्तु ध्यान रखे कि वही गलती बार बार न हो।

कोई गलती हो जाए तो हमें तीन बातें जरूर करनी चाहिए। पहला - गलती को स्वीकारना, दूसरा - गलती से सीखना व तीसरा - उसे फिर से न करना। गलतियों को स्वीकार करना ही हमारी सुधार करने की इच्छा को दिखाता है।

 संस्कारों में धारणा 

गलतियां एक लगातार चलने वाली पाठशाला है जिनसे हम सीखते रहेंगें। गलतियों से सीख कर पहले हो चुकी गलतियों को दुबारा नही होने देंगें

माफ़ी मांगने व माफ़ करने में संकोच नही करेगें। हमारी गलतियां उजागर करने वाले को अपना सच्चा मित्र मान सम्बन्ध बनाए रखने का प्रयत्न करेंगें।

गलत होने पर हम स्वयं को सही सिद्ध करने का प्रयास नही करेंगें, गलती किसी से भी हो सकती है, गलतियों को मन में घर नही बनाने देंगें।❤❤
 ब्रान्डेड चीज 
हमेशा इन ब्रान्डेड चीजो का ही इस्तेमाल करे....
1. होठों के लिये " सत्य 
2. आवाज के लिये " प्रार्थना"
3. आंखो के लिये " दया"
4. हाथों के लिये " दान "
5. ह्दय के लिये "प्रेम"
6. चहेरे के लिये " हँसी " ओर
7. बड़ा बनने के लिये "माफी"
 बात करने पर
दुनियां से बात करने के लिये फोन की जरूरत होती है।
और प्रभु से बात करने के लिये मौन की जरूरत होती है।।
फोन से बात करने पर बिल देना पड़ता है ,
और ईश्वर से बात करने पर दिल देना पड़ता है।
         “माया” को चाहने वाला,
  “बिखर” जाता है.” भगवान को चाहने वाला,
          “निखर” जाता है..
 मेढक
एक मेढक पेड़ की चोटी पर चढ़ने का सोचता है और आगे बढ़ता है
 बाकी के सारे मेंढक शोर मचाने लगते हैं "ये असंभव है.. आज तक कोई नहीं चढ़ा.. ये असंभव है.. नहीं चढ़ पाओगे"
मगर मेंढक आख़िर पेड़ की चोटी पर पहुँच ही जाता है.. जानते हैं क्यूँ?
क्योंकि वो मेंढक "बहरा" होता है.. और सारे मेंढकों को चिल्लाते देख सोचता है कि सारे उसका उत्साह बढ़ा रहे हैं
 इसलिए अगर आपको अपने लक्ष्य पर पहुंचना है तो नकारात्मक लोगों के प्रति "बहरे" हो जाइए |
अनमोल
 "एक कागज का टुकड़ा
            गवर्नर के हस्ताक्षर से
               नोट बन जाता है,
       जिसे तोड़ने, मरोडने, 
           गंदा होने एव जज॔र होने से भी
             उसकी कीमत कम नहीं होती...
       आप भी ईश्वर के हस्ताक्षर है,
           जब तक आप ना चाहे
              आपकी कीमत कम नहीं
                 हो सकती,
      आप अनमोल है ,
           अपनी कीमत पहचानिये...!!!
 सोचो
किसी भी व्यक्ति की कोई बात बुरी लगे तो दो तरह से सोचो।

    यदि व्यक्ति महत्वपूर्ण है तो बात भूल जाओ
               और 
    बात महत्वपूर्ण है तो व्यक्ति को भूल जाओ।

Wednesday, 21 December 2016

 समझ
जितना बड़ा "बंगला" होता है उतना बड़ा "दरवाजा" नही होता 

जितना बड़ा "दरवाजा" होता है उतना बड़ा "ताला" नही होता 

जितना बड़ा "ताला" होता है उतनी बड़ी "चाबी" नही होती ।

परन्तु "चाबी" का पूरे बंगले पर अधिकार होता है।
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इसी तरह मानव के जीवन मे बंधन और मुक्ति का आधार मन की चाबी पर ही निर्भर होता है।

पैसे के अभाव मे जगत 1% दुखी है

 परन्तु 

समझ के अभाव मे जगत 99% दुखी है।

"सदा खुश रहिए और मस्त रहिए"
  संभाल
  खाक मुझमें कोई कमाल रखा है,
  मेरे दाता मुझे तो तूने संभाल रखा है.
     मेरे ऐबों पर डाल के पर्दा,
    मुझे अच्छों में डाल रखा है,
    मेरा नाता अपने से जोड़ के,
 तूने मेरी हर मुसीबत को टाल रखा है
  मैं तो कब का मिट गया होता..
  "हे ईश्वर बस तुम्हारे आशीर्वाद
     ने मुझे संभाल रखा है"
❤ आज के 3 उत्तम विचार ❤
रिश्ते चाहे कितने ही बुरे हो,उन्हें तोडना मत क्योकि, पानी चाहे कितना भी गंदा हो,अगर प्यास नहीं बुझा सकता पर आग तो बुझा सकता है।

एक छोटी सी चिंटी आपके पैर को काट सकती है,पर आप उसके पैर को नहीं काट सकते ! इसलिए जीवन में किसी को छोटा ना समझे ! क्योकि वह जो कर सकता ,शायद आप ना कर पाये !!

जब कुछ सेकण्ड की मुस्कराहट से तस्वीर अच्छी आ सकती है,तो हमेशा मुस्करा के जीने से जिनदगी अच्छी क्यों नहीं हो सकती।
❤ बहुत ही खूबसूरत लाईनें..
किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये,
कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता..!
डरिये वक़्त की मार से,
बुरा वक़्त किसी को बताकर नही आता..!
अकल कितनी भी तेज ह़ो,
नसीब के बिना नही जीत सकती..
बीरबल अकलमंद होने के बावजूद,
कभी बादशाह नही बन सका...!!"
❤ रोजाना पढ़ो और चिंतन करो---
पहला - मरना अवश्य है ।
दूसरा - साथ कुछ नहीं जाना है ।
तीसरा - जो करेगा वो भरेगा ।
चौथा -जहाँ उलझो वहीं सुलझो ।
पाँचवा -जो है उसमें संतोष करो ।
ईश्वर मेरे बिना भी ईश्वर ही है...
       मगर मैं
ईश्वर के बिना कुछ भी नहीं..