Moti



संसार के इस खेल में हर कोई अपनी क्षमता 
और समझ से कार्य कर रहा है इसलिए हर कोई "सही" है सभी को स्वीकार करें


हम सभी को अपने पिता परमात्मा जैसा
 खुले और बड़े दिल से रहम और क्षमा के सागर बनना है।


परमात्मा सुख के सागर हैं उनसे सम्बन्ध जोड़ कर
 उनकी याद से ही हम सब सुखी बनेंगे.

 

झूठ, चालाकी, चापलूसी, चोरी आदि से विश्व के सभी वैभव तो प्राप्त हो सकते हैं, 
परंतु परमात्मा की कृपा नहीं पाई जा सकती है


जो मनुष्य स्वयं के प्रति शुभ भावना रखते हैं 
वही स्वयं को और विश्व को भी जीत लेते हैं


अगर हम सत्य से छिपते हैं तो इसका अर्थ है कि
 हम अवश्य ही सत्य का संग कर रहे हैं


चाहे छोटा हो या बड़ा ज्ञानी हो या अज्ञानी हर एक मनुष्य अपने अपने रुप से परमात्मा से
 सुख शांति का अधिकार लेता है



हम तन को महकाने के लिए खुशबूदार चीजें तो लगा लेते हैं 
पर क्या अपने मन अर्थात "विचारों" को खुशबूदार बना पाते हैं


जिस घड़ी से मन अपने और दूसरों के लिए शुभ सोचना प्रारंभ कर देता है 
शांति उसी घड़ी प्रवेश कर लेती है।


तूफान से घिरा हुआ मन अगर धीरज की डोर को पकड़ कर रखे तो 
सुख की सुबह अवश्य दिखाई देगी


सुख और दुख जीवन के दो पहलू हैं, एक के बिना दूसरा अधूरा है, 
इसलिए दोनों को ही स्वीकार करना ही पड़ता है।


कोई इतना अमीर भी नहीं होता जो अपना बीता हुआ कल खरीद सके
 और कोई इतना गरीब नहीं होता कि अपना आने वाला कल ना बदल सके


परमात्मा सदा शिव का मूल कर्तव्य मनुष्य
तन का आधार ले कलयुग को सतयुग में परिवर्तित करना है।


लोगों पर वही मनुष्य प्रभाव डाल सकता है 
जो "मैं" रूपी अहंकार से मुक्त हो सभी को समान मानता हो।



जब जब धर्म की अति ग्लानि होती है और अधर्म बढ़ने लगता है, 
तब मैं (शिव) मानवीय तन में भारत भूमि पर अवतरित होता हूँ।


हमारी खुश-किस्मती यह है कि हम भगवान को "एक" मानते हैं, पर बद-किस्मती यह है
 कि हम भगवान की "एक" नही मानते


ईश्वर वो है जो हमारे मार्ग के अंधियारे को "ज्ञान" का प्रकाश दे, दुःख दूर करने आते है।
 न कि हमारी चाहनाओ को पूरा करने आते है।


जितना हम अपनी विशेषताओं का प्रयोग करते जाते है,तो कमजोरियां स्वतः दूर होती जाती है।
 इसलिए कमजोरियों को न देख विशेषताओं को देखो


दुःख से भरी इस दुनिया में वास्तविक सम्पत्ति धन नही बल्कि दुवाएँ और संतुष्टता है।


कोई भी मनुष्य किसी के बुरा बोलने से नही गिरता बल्कि 
स्वयं के बुरे कर्म ही मनुष्य को नीचे गिरा कर मनुष्य से जानवर बना देते है।


अपने स्वभाव को ऐसा शांत-चित्त-निर्मल-सरल बना लो जो क्रोध का भूत स्वतः भाग जाये।


अगर कोई पूछे जिंदगी में क्या खोया क्या पाया तो बे झिझक कहना
 के जो कुछ खोया वो मेरी नादानी है और जो भी पाया वो मेरे रब की मेहरबानी है।


परमात्मा ने हम मनुष्यों को "संकल्प" की कलम दे रखी है, 
जिससे हर मनुष्य अपना भविष्य अपने अनुसार बना सकता है।


जब परिस्थितिया आपको घुटनो पे गिरा दे तब याद रहे, प्रार्थना करने की यह सही स्थिति है
 और प्रार्थना आपको पुनः अपने पैरों पर खड़ा कर देगी।


यदि आप प्रेम युक्त होने के साथ-साथ नियम युक्त होकर नहीं रह सकते तो
 आप में अवश्य किसी शक्ति की कमी है, अपनी जांच करें वह उस कमी को दूर करें.


 आपके अपने स्वभाव के सिवाय कोई आपको दुख नहीं देता, 
अपना स्वभाव मधुर व प्रेम युक्त बनाएं, तथा सब का दिल जीते केवल मियां मिट्ठू ने बने।


 झूठ रूपी अंधेरा कितना भी गहरा क्यों न हो, पर 
सत्यता के प्रकाश से कभी भी छुप नहीं सकता



 परिवार में आपसी प्रेम का आधार है स्नेह और सहयोग का धागा  लगाकर रखना, 
जो आपको भी करने नहीं देगा


 घृणा की भावना मनुष्य को दुखो से भर देती है, इस भावना को 
प्रेम से ही जीता जा सकता है।


हर व्यक्ति से प्रेम हो इसके लिए उनके गुणों और विशेषताओं को
 देखने की आदत डालनी होगी।


साफ़ व सच्ची दिल का अर्थ है मन में सदा सब के प्रति श्रेष्ठ विचार आए
 न की जो गलत विचार आए और उसे बोल दे।


 अपने अंदर से अहंकार को निकाल कर स्वयं को हल्का कीजिए क्योंकि ऊंचा वही उड़ता है 
जो हल्का होता है।


हमारे सुखों के दिन उसी दिन से शुरु हो जाते हैं जिस दिन से हम 
अपने मूल कर्तव्यों को जान दूसरों को सुख देना शुरु कर देते हैं।



 ज्ञान की दो बूंदे जीवन में डालने से जीवन का रंग ज्ञानमय हो, जाता है 
जिस प्रकार रंगों की दो बूंदों से पानी रंगीन हो जाता है



मन की बीमारी से बचना चाहते हैं इसके लिए गीता में ईश्वर के महावाक्य हैं कि
 मन को मेरी याद में लगा दो अर्थात 'मनमनाभव' हो जाओ



अंत मति सो गति अर्थात शरीर को छोड़ते समय आत्मा जो सोचती जिसके बारे में सोचती है
 वहीं चली जाती है इसलिए ईश्वर के बारे में सोचें



किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए तीन बातों का होना अनिवार्य है
 इच्छा विश्वास और मेहनत



जिस प्रकार से धरती के गर्भ से मूल्यवान धातु निकलती है 
ऐसे परमात्मा के याद रूपी ज्वाला से आत्मा के गुण बाहर आते हैं।



हम सभी के अंदर देवताइ संस्कार समाए हुए हैं इसलिए जब कभी गलती हो जाती है
 तो मन में अफसोस होता है 



प्यार इंसानों से नहीं करो उनकी अच्छाइयों से करो, भूलाओ उनकी "बुराइयों" को, उन्हें नहीं,
 क्योंकि मानवता से बढ़कर इस दुनिया में कुछ नहीं




प्यार वह दवाई है जिससे संबंधों के बीच लगने वाले जख्म पूरी तरह से भर जाते हैं



मान-अपमान, हार-जीत की भावना समानता में तब बदल जाती है, 
जब हमें अपने आत्मा होने का ज्ञान प्राप्त होता है



अगर स्वयं में दैवी गुणों का आह्वान करें तो अवगुण स्वतः भाग जाएंगे



यदि हमारा पैर फिसल जाए तो हम संभल सकते हैं, परंतु जुबान फिसल जाए तो 
यह गहरा घाव कर देती है



अपने शब्दों में ताकत डालें आवाज में नहीं, बारिश से फूल उगते हैं 
तूफान से नहीं....!!!



ईश्वर कहते तुम मेरे बच्चे हो मेरे चरण नहीं पढ़ो; गुणवान बनो 
और मुझसे स्वर्ग के सुख का वर्सा ले लो



 धन कि तुमको रक्षा करनी पड़ती है और ज्ञान तुम्हारी रक्षा करता है।



अगर भय को जीतना है तो उस परिस्थिति से सामना करना सीखो
 जिससे भय लगता है


जो ईश्वर को उनके नाम (शिव) रूप (ज्योति बिंदु) सहित याद करते
 उन्हें ही ईश्वरीय बल मिलता है।



श्रेष्ठ कर्म वही है जो सुख की अनुभूति कराये जो कर्म दुःख की अनुभूति कराये
 वह पाप कर्म है।



आपके मुख से दिन भर निकले सभी शब्दों में से कितने शब्द परमात्मा के प्रति होते हैं ?
चेक करें



"खुशी अपनी चीज है और परिस्थिति पराई चीज, तो अपनी चीज कभी खोने नहीं देना"



                               हमें शांति अच्छी लगती क्योंकि हम आत्माओं का स्व- धर्म शांति है,
                                  और हम शांति-धाम में शांति के सागर के साथ रहने वाली हैं.



परमात्मा पिता (God Father) कहते हैं, यदि जीवन में खुश रहना चाहते है 
तो पास्ट की उन बातों को भुला दे जो दुःख देती है।



मन को तंदुरुस्त रखने के लिए दिन में 3 बार 2 -2 मिनट के लिए शांति में स्थित हो
 शांति के सागर को याद करना



मोह को नष्ट करने के लिए स्वम् को याद दिलाये कि दुनिया में ऐसा कोई नही 
जिसके बिना में नही रह सकता हु ।



मनुष्य अपनी महानता से नीचे गिरता है कारण है,वह अपने वास्तविक दैवी मूल्यों को नकारता है
 और आसुरी गुणों को स्वीकारता है


तनाव का एक और कारण यह भी होता है,अपनी भावनाओं को नकारात्मकता से मुक्त रखना।



हम जो सेंट (Perfume) लगाते वही खुशबू सबको हमसे मिलेगी,
क्या हमारे अंदर से स्नेह और शांति की खुशबू सबको मिलती है



जैसे "जल" का वास्तविक गुण शीतलता है, तपना नही, ऐसे ही आत्मा का वास्तविक गुण
 "शांति" है क्रोध नही।



हम आत्मा ज्योति-प्रकाश स्वरूप है, तो हमारा कार्य भी विश्व में प्रकाश फैलाना हो।



जिस प्रकार शिवलिग से सांप निरन्तर लिपटा रहता है और पुज्यनीय बन जाता है, 
उसी तरह हमारी बुद्धि परमात्मा शिव से जुडी रहे तो हम भी पूज्यनीय बन जाये।



तन का कितना भी कड़ा बंधन क्यों ना हो, पर आत्मा परमात्मा के चिंतन में है
 तो आत्मा जैसे "स्वतन्त्र" है, इसे ही सच्ची स्वतंत्रता कहेंगे ।


जवाबदारियां सँभालते हुए अपने मन को सदा स्वतंत्र रखना ये भी एक कला है।



सम्पूर्ण विश्व को परिवार के रूप में परिवर्तन करने के लिए ईश्वर ने मन्त्र दिया..
अपने को आत्मा भाई भाई समझो।



नई सृष्टि शुभारम्भ कृष्णा का जन्म ही जन्माष्टमी पर्व का सूचक है। 
अज्ञानता को विदाई दे ज्ञान उजाला देने का प्रतीक है।


जो मनुष्य स्वयं के प्रति शुभ भावना रखते है, वही स्वयं को और विश्व को भी जीत लेते है।



सब में विशेषता भरने वाला ईश्वर है, तो हमारा लगाव ईश्वर से होना चाहिए



एक ईमानदार व्यक्ति  कभी किसी अनजान व्यक्ति की नजरों से भयभीत नही होता।



हम आत्मा इस शरीर रूपी रथ की सारथी हूँ, इस स्मृति से मन बुद्धि को सदा
 कण्ट्रोल कर सकते है।



हँसते हुए लोगो की संगत इत्र (परफ्यूम)की दुकान जैसी होती है 
कुछ ना खरीदो फिर भी रूह महका देती है।



शारीरिक बल से मानसिक बल अधिक शाक्तिशाली होता है,
और मानसिक बल से आत्मिक बल अधिक शक्तिशाली होता है।



इस समय सारे विश्व को जरूरत है मन की शांति की,
वो प्राप्त होगी
शांति सागर परमात्मा की याद में शांत स्वरूप स्थित होने से।


जैसे जैसे आपका स्वभाव संस्कार परिवर्तन होगा
 आपके सम्बन्ध संपर्क में आने वाली आत्माये आपकी सहयोगी बन जाएगी 
और सहयोगी बनते बनते योगी भी बन जाएगी  


हम आदर्श प्रेम का निर्माण करने की बजाए
 आदर्श प्रेमी को खोजने में अपना समय बर्बाद कर देते है।


प्रेम शक्ति की शक्ति के आगे कैसे भी स्वभाव के व्यक्ति परिवर्तन हो जाएंगे


खुद को देखो और खुद की कमियों को भरो 
तो खुदा का प्यार मिलेगा


मन को शीतल ,बुद्धि को रहम दिल 
और मुख को मीठा बनाना है 

जिस प्रकार भरे हुए बर्तन में पानी कि बुँदे ठहर नही पाती ,वैसे ही अशांत मन में 
परमात्मा कि याद ठहर नही पाती