Hindi Story

दुनिया एक आईने के समान है
एक गाँव सुमन नाम की लड़की रहती थी. उसके पढ़ाई पूरी होते ही घरवाले उसकी शादी के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया और कुछ ही दिनों में सुमन की शादी पास वाले गाँव में हो गयी. शादी के बाद वह अपने पति के रहने लगी. घर पर तीन जन ही थे. एक सुमन एक उसके पति और उसकी सास. पति काम के कारण पूरा दिन बाहर ही रहते थे. कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक चला .. पर कुछ महीनों बीतने के बाद सुमन और उसकी सास में कटपट होने लगी. पति ने दोनों बहुत समझाया पर कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था.
दिन बीतता गया और सुमन और उसकी सास के रिश्ते भी बिगड़ते चले गए. एक दिन तो बात इतनी बिगड़ गयी कि मार-पीट की नौबत आ गयी. इस बात से परेशान होकर सुमन अपनी माइके चली गयी और वहाँ जाने के बाद उसने सोच लिया कि कुछ भी हो वो अपनी सास से बदला ले कर ही रहेगी. उसके गाँव एक वैध रहता था जो उसके पापा का बहुत अच्छा दोस्त था.
वो वैध के पास गयी और बोली “वैधजी मैं अपनी सास से बहुत परेशान हूँ मेरा किया उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता, हर काम में कमी निकालना, ताने मारना उनका स्वभाव है. मुझे किसी भी तरह उनसे छुटकारा दिला दीजिये”. गुस्से में उसने अपनी पूरी बात बोल दी. वैधजी थोड़ी देर सोचने के बाद कहा “बेटी मैं तुम्हारे पापा का बहुत अच्छा दोस्त हूँ इसलिए मैं तुम्हारी मदद करने को तैयार हूँ पर जैसा मैं बोलूँ वैसा ही करना, वरना मुसीबत में फंस सकती हो.” सुमन ने कहा “वैधजी मैं वैसा ही करूंगी जैसा आप बोलोगे और पापा को कुछ भी न बोलिएगा।”
वैधजी उठ कर अंदर चले गए और थोड़ी देर बाद जब वह आए तो उनके हाथ में जड़ी बूटियों एक डब्बा था. उन्होने डब्बा देते हुए सुमन से कहा “तुम अपनी सास को मरने के लिए किसी तेज़ जहर का इस्तेमाल नहीं कर सकती क्योकि उससे तुम पकड़ी जाओगी.
यह डब्बा लो इसके अंदर कुछ खास जड़ी-बूटियाँ हैं जो धीरे-धीरे इंसान के अंदर जहर पैदा कर देती है और सात से आठ महीनों में उसकी मौत हो जाती है. अब हर रोज़ तुम अपनी सास के कुछ पकवान बनाना और चुपके से उसमे मिला देना और ध्यान रहे इस बीच तुम्हें अपनी सास से अच्छी तरह पेश आना होगा उनकी हर बात माननी होगी ताकि मौत के बाद किसी को तुम पर शक न हो. अब तुम वापस जाओ और अपनी सास से अच्छा व्यवहार करो.”
अब सुमन खुशी – खुशी वह डब्बा ले कर अपनी ससुराल आ गयी. अब उसका व्यवहार बिलकुल बदल चुका था. अब वो अपनी सास कि बातें मानने लगी थी और उनके लिए अच्छा से अच्छा खाना बनाने लगी थी. बीच – बीच में जब भी उसे गुस्सा आता तो वह वैधजी की बाते याद करके अपने गुस्से पे काबू पा लेती थी. 6 महीने बीतते – बीतते घर का माहौल बिलकुल बदल चुका था.
वह सास जो अपनी बहू की सिर्फ बुराई करती थी अब वह सभी से अपनी बहू तारीफ करते नहीं थकती थी. अब सुमन को भी बहुत अच्छा लागने लगा था. सुमन को अपनी सास में माँ दिखने लगी थी और सास को सुमन में अपनी बेटी. अब सुमन को अपनी सास कि मौत का डर सताने लगा था. |
वह सास और पति से कुछ बहाना बना कर कुछ दिनों के लिए माइके आ गयी और सीधा वैधजी के पास पहुँची और रोते हुए बोली “वैधजी मेरी मदद कीजिये मैं अपनी सास को नहीं मारना चाहती वो पूरी तरह से बदल गयी है और मुझे बहुत प्यार करने लगी है. मैं भी उन्हे उतना ही प्यार करने लगी हूँ.
कुछ कर के उस जहर का असर खत्म कर दीजिये.” वैधजी बोले “बेटी चिंता करने कि कोई जरूरत नहीं है क्योकि मैंने तुम्हें कोई जहर दिया ही नहीं था. उस डिब्बे में स्वस्थ वर्धक जड़ी बूटिया थी जहर तो तुम्हारे दिमाग में था. तुम्हारे नज़रिये में था. लेकिन अब मैं खुश हूँ क्योकि तुमने जो सास की सेवा की उससे तुम्हारे दिमाग की जहर को खत्म कर दिया.” पूरी कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद 
फ्रेंड्स इस कहानी से हम क्या सीखते हैं ?
1. दुनिया एक आईने के समान है…. हम दूसरों से जैसा व्यवहार करेंगे वो भी हम से वैसा ही व्यवहार करेंगे.
2. हमे दूसरों को बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए दूसरों को बदलने से अच्छा है खुद को बदलना.

















    मनहूस सूरत

रामैया नाम के आदमी के विषय में नगर-भर में यह प्रसिद्ध था कि जो कोई प्रातः उसकी सूरत देख लेता थाउसे दिन-भर खाने को नहीं मिलता था। इसलिए सुबह-सुबह कोई उसके सामने आना पसंद नहीं करता था।

किसी तरह यह बात राजा कृष्णदेव राय तक पहुँच गई। उन्होंने सोचाइस बात की परीक्षा करनी चाहिए। 
उन्होंने रामैया को बुलवाकर रात को अपने साथ के कक्ष में सुला दिया और दूसरे दिन प्रातः उठने पर सबसे पहले उसकी सूरत देखी।
दरबार के आवश्यक काम निबटाने के बाद राजा जब 
भोजन के लिए अपने भोजन कक्ष में गए तो
 भोजन परोसा गया। अभी राजा ने पहला कौर ही उठाया था कि खाने में
 मक्खी दिखाई दी। देखते-ही-देखते उनका मन खराब होने लगा और वह भोजन छोड़कर उठ
 गए। दोबारा भोजन तैयार होते-होते इतना समय बीत गया कि राजा की भूख ही मिट गई।
राजा ने सोचा-अवश्य यह रामैया मनहूस हैतभी तो
 आज सारा दिन भोजन नसीब नहीं हुआ।
 क्रोध में आकर राजा ने आज्ञा दी कि इस मनहूस को
 फाँसी दे दी
 जाए। राज्य के प्रहरी उसे फाँसी देने के लिए ले चले। रास्ते में उन्हें तेनालीराम मिला। उसने पूछा तो रामैया ने उसे सारी बात कह सुनाई।
तेनालीराम ने उसे धीरज बँधाया और उसके कान में
 कहातुम्हें फाँसी देने से पहले ये तुम्हारी 
अंतिम इच्छा पूछेंगे। तुम कहनामैं चाहता हूँ कि मैं जनता के सामने जाकर कहूँ कि मेरी सूरत देखकर तो खाना नहीं
 मिलतापर जो सवेरे-सवेरे महाराज की सूरत देख लेता हैउसे तो अपने प्राण गँवाने पड़ते हैं।
यह समझाकर तेनालीराम चलागया। फाँसी देने से पहले प्रहरियों ने रामैया से पूछातुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है? रामैया ने वही कह
दियाजो तेनालीराम ने समझाया था। प्रहरी उसकी अनोखी इच्छा सुनकर चकित रह 
गए। उन्होंने रामैया की अंतिम इच्छा राजा को बताई।
राजा सुनकर सन्न रह गए। अगर रामैया ने लोगों के बीच यह बात कह दी तो अनर्थ हो जाएगा। उन्होंने रामैया को बुलवाकर बहुत-सा पुरस्कार दिया और कहा-यह बात किसी से मत कहना।













सच्ची ख़ुशी True Happiness 


अबू हसन अपने समय के प्रसिद्ध संत थे. वे बहुत सरल, विनम्र व सदा जीवन व्यतीत करते
 थे. अनेक लोग उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करते थे. मुहम्मद गजनवी उनके इलाके का बादशाह
 था. जब बादशाह क़ो बोध  हुआ और उसे लगा की उसकी मृत्यु नजदीक आ चुकी है तो
 उसके मन में ख्याल उठा की एक दिन मुझे भी मरना है और मुझे भी कर्मों का हिसाब
 चुकाना होगा.



यह जो सोन-चांदी, धन दौलत मैंने इकट्ठा कर रखा है, वह सब  यहीं पड़ा रह जाएगा.यह
 सोच उसके दिमाग में आते ही वह उदास हो गया. उसने अपने वजीर से कहा, ‘क्या अपने
 मुल्क में कोई ऐसा फकीर है, जिसके सामने जा कर मैं अपनी मन की बात कह सकूं और
 उसकी दुआ प्राप्त कर सकूँ? यह मनोव्यथा मुझ से नहीं सही जाती.’





वजीर ने उत्तर दिया, ‘हुजुर अबू हसन बहुत बड़े महात्मा हैं आप चाहें तो उससे मिल सकते हैं.’


मुहम्मद गजनवी शाही ठाठ बाट से संत से मिलने गया. उसके दूत ने जाकर फकीर से
 कहा, ‘बादशाह आपके दर्शन को आए हैं. कृपा बाहर  निकल कर उनका स्वागत कीजिए.’



अबू हसन ने उत्तर दिया, ‘मैं इस समय बादशाहों के बादशाह की हुजूरी में हूँ, मुझे
 तुम्हार्रे बादशाह से मिलने का समय नहीं है.’



बादशाह ने जब यह उत्तर सुना तो उसे बहुत बुरा लगा, उसने सोचा कि इस फकीर की
 परीक्षा लेनी चाहिए . उसने अपना वेश बदल कर एक साधारण सेवक का वेश धारण किया
 और संत के सामने उपस्थित हुआ.



संत ने देखते ही कहा, ‘ये तो उपरी दिखावे हैं. इनसे  क्या होगा . आज बादशाह गुलाम के 
कपडे पहन कर आया है तो वो गुलाम थोड़े ही हो जाएगा..’



बादशाह शर्मिन्दा हुआ और संत के आगे नतमस्तक हुआ. जब दुख-दर्द की बात सुनाकर ,
 संत की दुआ लेकर चलने लगा तो उसने सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट कीं. संत ने उन्हें छुआ तक नही
 और एक सुखी रोटी का टुकड़ा देते हुए कहा, ‘इसे खा लीजिये.’



बादशाह ने खाना चाहा लेकिन वह उसे अपने गले से नीचे  नहीं उतार पाया इस पर संत ने
 उसे  कहा, ‘बादशाह आप एक रोटी का टुकड़ा नहीं निगल सकते, तो मैं आपकी मोहरें 
कैसे निगल लूँगा?’.


किसने कहा है की ख़ुशी दौलत से ही खरीदी जा सकती हैं . अगर ख़ुशी को पहचान लें
 तो आसानी के साथ बिलकुल सस्ते दामों में उसे खरीद सकते हैं.




जरूरत की समझ जरूरी Understanding of the Need


 कब किस चीज़ की कितनी और क्यूँ ज़रूरत हैयह जानने  और उसे समझने का नाम है Understanding of the Need आइये आज हम बात करते हैं इसी विषय पर.



आप प्रतिदिन अनेक काम करते होंगे। बड़े होकर भी आपको अनेक काम करने होंगे। कुछ काम अपने  लिए करने होगें। कुछ काम दूसरों के लिए करने होंगे। काम करना जरूरी हैकाम करना जितना जरूरी है उससे ज्यादा यह जानना जरूरी है कि काम कब किया जाये। बिना जाने आपके कार्य व्यर्थ हो सकते हैं। अपने हिसाब से तो आप अच्छा का काम करोगेलेकिन वह काम जरूरत के अनुसार नही हुआ तोबेकार हो जायेगा। अतः आपको जरूरत के अनुसार काम करना चाहिए। समय के अनुसार निर्णय लेकर काम करेंगे तोवह काम सदा आपके लिए हितकर होगा।

मान लीजयेआप सड़क पर चले जा रहे हैं। आप ने देखा कि सामने से एक तेज गाड़ी तेज गति से चली  रही है। यह देखकर आप सड़क के बायें किनारे हो गये। अपने विवेक से आप ने बिल्कुल ठीक किया। लेकिनआप ने देखा कि गाड़ी का संतुलन बिगड़ गया है। यदि आप वहाँ से सिर पर पैर रखकर  भागे तोगाड़ी आपसे टकरा जायेगी। अब बताओऐसे समय में आप क्या करोगेयह तो नहीं कहेंगे  किनियम के अनुसार मैं बिलकुल ठीक हुँ। गाड़ी कैसे टक्कर मरेगीआप नियम के अनुसार सचमच ठीक हैं। लेकिनजरूरत की कसौटी पर गलत हैं। ऐसे समय में आपको जितनी जल्दी हो सकेवहाँ से भाग जाना चाहिए। नहीं भागेंगेतो फिर भागवान ही रक्षक हैं।
इस प्रकार आपने देखा कि जरूरत की समझ जरूरी है यानी Understanding of the Need इस संबंध में दो प्रेरक प्रसंग  हैं।
एक बार भागवान गौतम बुद्ध के शिष्य घूम-घूमकर उपदेश दे रहे थे। उनमें से एक शिष्य एक दुःखी व्यक्ति को उपदेश दे रहा था। उस दुःखी आदमी पर उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। गौतम बुद्ध के शिष्य ने बहुत चेष्टा कीलेकिन उस दुःखी व्यक्ति ने उन उपदेशों से कुछ भी ग्रहण नहीं किया। अंत में हारकर वह शिष्य गौतम बुद्ध के पास लौट आया और बोलाप्रभूआपका उपदेश सुखी व्यक्तियों के लिए ही है। मैने एक दुःखी व्यक्ति को उपदेश दिया। लेकिन वह दुःखी व्यक्ति कुछ समझ ही  नहीं रहा है। उपदेशों का उस पर कोई प्रभाव ही नही पड़ा। मैं हार गया।
गौतम बुद्ध ने अपने शिष्य की सम्पूर्ण बाते बड़े ध्यान से सुनी। उन्होनें अपने शिष्य को उस दुःखी व्यक्ति को बुलाकर लाने को कहा। वह दुःखी व्यक्ति बुद्ध के सामने लाया गया। बुद्ध ने देखा कि वह भुखा है। उन्होंने अपने शिष्य से कहा-भोजन लावो। भोजन लाया गया। बुद्ध ने उस भुखे व्यक्ति को भरपेट भोजन कराया और उसे वहाँ से भेज दिया।
यह सब देखकर बुद्ध के उस शिष्य को बहुत आश्चर्य हुआ।
उसने कहा-प्रभुआपने उसे उपदेश नही दिया?
बुद्ध ने कहावत्सउपदेश देना अच्छी बात हैलेकिन उस व्यक्ति को आज उपदेश की नही भोजन की आवश्यकता थी। वत्सदूसरों की आवशकता को समझो। हर बात हर समय किसी के लिऐ सर्वदा अनुकूल या प्रिय नही होती। यही कारण है कि उपदेश का प्रभाव उस भुखे व्यक्ति पर नहीं पड़ा।

इस प्रकारअपने बारे में हो या दुसरो के संबंध मेंआपमें जरूरत की समझ (Understanding) जरूरी है। कब क्या करना हैइसको जने बिना सब गुड़-गोबर हो जायेगा।







दुःख सह कर भी सुख बांटो i


एक शहर था. एक बार उस शहर में Circus आया. उस Circus में एक joker था. वह अपने अनोखे करतब से लोगों को हंसाता था. लोग हंसते हँसते लोट पोट  हो जाते थे.



Joker के करतब के कमाल की बात पुरे शहर में फैल गयी. लोग Circus देखने जाने लगे सचमुच वह joker खूब हंसाता था. Circus देख कर जो भी निकलता, वह ठहाके लगाते  रहता. बाद में भी लोग joker के कारनामों को याद कर के ठहाके लगा कर हंसने लगते. इसका Result यह हुआ कि शहर के लोग धीरे धीरे तरह तरह की बीमारियों से मुक्त होने लगे. हंसने से ऐसा लाभ होता ही है. यह Research में सिद्ध भी हो चूका है.



हालत यह हो गयी की Doctors के यहाँ और Hospital में Patients की संख्या घटने लगी. Medical Store में दवाइयों की बिक्री में भी कमी आने लगी. पुरे शहर में यह बात चर्चा का विषय बन गयी. शहर के Journalists और Press के कानों तक भी यह बात पहुंची.


पत्रकारों ने तय किया की Circus के joker से मिला जाए और उससे उसके हंसाने वाले कारनामों के बारे में, उनके गुर के बारे में पूछा जाए. पत्रकारों ने joker से मिलने के लिए एक Group बनाया. इसमें उन्होने शहर के नामी Doctor और औषधि विक्रेताओं के पर्तिनिध्यों को भी शामिल किया.


एक दिन सभी लोग Circus के घेरे में joker से मिलने पहुंचे. तब Circus के शो का समय नहीं था. joker अपने Tent में था. सब Tent में गए. वहां उन्हों ने देखा की joker बिस्तर पर लेटा है और थका थका, बीमार सा, मुरझाया सा लग रहा है. उन्हें joker की यह दशा देख कर आशचर्य हुआ.



अपने Tent में शहर के लोगों को आया देख कर joker उठा. पर उठने में भी उसे, ऐसा लगा जैसे घोर पीड़ा हुई हो. पीड़ा के लक्षण उसके चेहरे पर उभर आए. फीकी मुस्कान के साथ हाथ जोड़ कर joker ने सब का स्वागत, अभिवादन किया.



तभी Circus का Manager भी वहां आ गया. joker की इस स्तिथि को देख कर स्तब्ध से रह गए संवादाताओं एवं चिकित्सकों ने Manager से joker की ऐसी हालत होने का कारण पूछा. पर joker ने तो कुछ नहीं बतलाया, अपनी आँखें नीची कर ली. उसकी आँखों में उदासी और गहरा गई.



Manager ने जो बतलाया उससे सभी के मन दुःख से भर गए. Manager ने कहा: joker को Blood Cancer है और उसके ठीक होने की आशा भी समाप्त हो गई है. डाक्टरों के अनुसार उसका शेष जीवन कुछ ही महीनों का रह गया है.



Manager ने बताया की जब डाक्टरों ने joker को कह दिया की उसका रोग लाइलाज है और वह कुछ ही महीनों का मेहमान है तो उसने यह तय किया की वह अपने जीवन की शेष अविधि Circus में ही काम करते हुए और लोगों को हंसाते हुए बिताएगा . और वह ऐसा ही कर रहा है. लोगों को हंसाने के लिए वह नित नए करतब सोचता और दिखाता है.

 घोर पीड़ा और निराशा का जीवन जीते हुए भी दूसरों को हंसाने के joker के इस संकल्प के बारे में जान कर सभी पत्रकारों, चिकित्सकों और औषधि विक्रेताओं के प्रतिनिधियों के हदय उसके प्रति श्रद्धा से भर गए. सभी ने एक आवाज़ हो कर कहा: तुम धन्य हो, महान  हो,. हम तुम्हें सलाम करते है.



पहले कुछ सहना पड़ता है। 

एक Hindi Story जो हमें याद दिलाती  है की अगर हमें कुछ पाना है तो उसके लिए कुछ खोने के लिए भी Ready रहना पड़ेगा। .

एक मर्तबे की बात है की एक आदमी Tattoo बनवाने के लिए उसे बनाने वाले के पास गया और कहा क़ी मेरे हाथ में शेर की आकृति बना दो।
गोदने वाले ने सुई उठाई और चिह्नित करना Start कर दिया। सुई की चुभन उस आदमी को बहुत दर्दनाक लगी । उस ने कहा “क्या बना रहे हो?” गोदने वाले ने कहा “पुंछ” आदमी ने कहा “क्या बगैर पुंछ के शेर नहीं होता” गोदने वाले ने कहा “अच्छा ठीक है” और दूसरी चीज़ बनाने लगा। अब सुई की  नोक फिर से चुभने लगी। आदमी ने कहा “अब क्या बना रहे हो?” उसने कहा “पैर” आदमी ने कहा “क्या पैर बनाना ज़रूरी है?” गोदने वाले ने कहा “अच्छा ठीक है इसे भी छोड़ देता हूँ” अब वह दूसरी चीज़ गोदने लगा। आदमी के अंदर फिर बेचैनी शुरू हो गई। उसने कहा “अब क्या बना रहे हो?” उसने कहा “मुंह” आदमी ने कहा “क्या मुंह बनान ज़रूरी है? तुम बगैर मुंह के ही शेर बना दो।” इसी तरह वह एक एक चीज़ को बनाने से रोकता रहा आखिर कर यह हुआ कि  शेर की आकृति न बन सकी केवल कुछ अजीब तरह के निशान बन कर रह गए।

हर उद्देश्य को पूरा करने के लिए शुरू में कुछ न कुछ सहना पड़ता है। अगर आदमी सहने के लिए तैयार न हो तो वह अपने किसी भी उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकता।


 शब्दों का महत्व

बात करने में शब्दों का बहुत बड़ा योगदान हुआ करता है, एक ही बात क़ो हम अलग अलग ढंग से कह सकते हैं ताकि लोग उस बात के साथ साथ बात करने वाले के Emotions को भी समझ पाएं, प्रस्तुत है ,

एक छोटी सी कहानी जो समझा दे शब्दों का महत्व
किसी इमारत के समक्ष एक अंधा अपनी टोपी को सामने रखे भीख मांग रहा था, साथ ही उसने एक तख्ती लगा रखी थी जिस पर लिखा था

“मैं अंधा हूँ मेरी सहायता कीजिए।”

घोषणाओं और उनका महत्व जानने वाला एक व्यक्ति उधर से गुजरा उसने देखा कि अंधा तो दयनीय है मगर उसकी टोपी में कुछ सिक्कों के सिवा कुछ भी नहीं है।

अंधे से पूछे बिना उसने तख्ती उठाई और पहले वाली लिखावट मिटा कर एक नई लिखावट लिख दी।


देखते ही देखते टोपी में सिक्के और नोट गिरना शुरू हो गए। अंधे ने महसूस किया कि कुछ परिवर्तन जरूर आया है और शायद आई भी इस पट्टिका की लिखावट की वज़ह से हैं । एक पैसे डालने वाले से उसने पूछा इस  तख्ती पर क्या लिखा है?

उसने बताया कि लिखा है,

“हम बहार के मौसम में रह रहे हैं, लेकिन मैं इस बहार की लाई हुई सौंदर्य को देखने से वंचित हूँ। ” कृपया मेरी मदत कीजिये

मनुष्यों को समझाने के लिए सही शब्दों का चुनाव आवश्यक है।



एक सेवा ऐसे भी ... 

एक कहानी जो आपकी सोच बदल दे
    सड़क किनारे खम्बे पर लटके कागज़ पर लिखा हुआ था ‘मेरे 50 रु गुम  हो गये हैं जिसको  मिले वह मेरे घर, जो की फलां जगह है, पहुँचाने का कष्ट करें. मैं एक बहुत ही गरीब और बूढी औरत हूँ मेरा कोई कमाने वाला नहीं. रोटी खरीदने के लिए भी मोहताज रहती हूँ।
        एक आदमी ने उसे पढ़ा तो वह कागज़ पर लिखे हुए पते पर पहुच गया जेब से 50 रु निकाल कर बुढिया को दिया तो वह पैसे लेते हुए रो पड़ी और कहने लगी “तुम बारहवें आदमी हो जिसे मेरे पचास रु मिले हैं और वह मुझे पहुंचाने चले आया हो “
        आदमी पैसे देकर मुस्कुराते हुए जाने लगा तो, बूढी औरत ने उसे पीछे से आवाज़ देते हुए कहा
” बेटा जाते हुए वह कागज़ जहाँ लगा हुआ है उसे फाड़ते हुए जाना क्यू के न तो मैं पढ़ी लिक्खी हूँ
और
न ही मैंने वह कागज़ वहां चिपकाया है”



























नजरिया – Attitude Story in Hindi


एक दिन एक अमीर व्यक्ति अपने बेटे को एक गाँव की यात्रा पर ले गया| वह अपने बेटे को यह बताना चाहता था वे कितने अमीर और भाग्यशाली है जबकि गाँवों के लोग कितने गरीब है| उन्होंने कुछ दिन एक गरीब के खेत पर बिताए और फिर अपने घर वापस लौट गए|
घर लौटते वक्त रास्ते में उस अमीर व्यक्ति ने अपने बेटे को पूछा – “तुमने देखा लोग कितने गरीब है और वे कैसा जीवन जीते है??   
बेटे ने कहाहां मैंने देखा”
हमारे पास एक कुता है और उनके पास चार है”
“हमारे पास एक छोटा सा स्वीमिंग पूल है और उनके पास एक पूरी नदी है”
“हमारे पास रात को जलाने के लिए विदेशों से मंगाई हुई कुछ महँगी लालटेन है और उनके पास रात को चमकने वाले अरबों तारें है”
“हम अपना खाना बाज़ार से खरीदते है जबकि वे अपना खाना खुद अपने खेत में उगाते है”
“हमारा एक छोटा सा परिवार है जिसमें पांच लोग है, जबकि उनका पूरा गाँव, उनका परिवार है”
“हमारे पास खुली हवा में घूमने के लिए एक छोटा सा गार्डन है और उनके पास पूरी धरती है जो कभी समाप्त नहीं होती”
“हमारी रक्षा करने के लिए हमारे घर के चारों तरफ बड़ी बड़ी दीवारें है और उनकी रक्षा करने के लिए उनके पास अच्छे-अच्छे दोस्त है” 
अपने बेटे की बाते सुनकर अमीर व्यक्ति कुछ बोल नहीं पा रहा था| बेटे ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा –
“धन्यवाद पिताजी, मुझे यह बताने के लिए की हम कितने गरीब है”



























अधूरा सच – 


एक 25 वर्ष का लड़का ट्रेन में सफ़र करते वक्त खिड़की से बाहर के नज़ारे को देख रहा था|
वह अचानक चिल्लाया – “पापा, वो देखो पेड़ पीछे जा रहे है!”
पिताजी मुस्कराए|
पास में बैठा एक व्यक्ति, लड़के के इस बचपने व्यवहार को देखकर हैरान था और उसे लड़के पर दया आ रही थी|
थोड़ी देर बाद लड़का फिर ख़ुशी से चिल्लाया – “देखो पापा, बादल हमारे साथ चल रहे है!”
अब पास में बैठे व्यक्ति से रहा नहीं गया और उसने कहा – “आप अपने बेटे को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते?”
लड़के के पिता ने कहा – “हम अभी अस्पताल से ही आ रहे है| दरअसल मेरा बेटा जन्म से ही अँधा था और आज ही उसको आँखे मिली है| आज वह पहली बार इस संसार को देख रहा है|”
हर व्यक्ति की अपनी एक कहानी होती है| सम्पूर्ण सच को जाने बिना किसी के भी व्यवहार के बारे में निर्णय नहीं करना चाहिए| हो सकता है कि जो दिख रहा है वह सम्पूर्ण सच न हो|


भगवान का अस्तित्व

एक बार एक व्यक्ति नाई की दुकान पर अपने बाल कटवाने गया| नाई और उस व्यक्ति के बीच में ऐसे ही बातें शुरू हो गई और वे लोग बातें करते-करते “भगवान” के विषय पर बातें करने लगे|
तभी नाई ने कहा – “मैं भगवान के अस्तित्व को नहीं मानता और इसीलिए तुम मुझे नास्तिक भी कह सकते हो”
“तुम ऐसा क्यों कह रहे हो”  व्यक्ति ने पूछा|
नाई ने कहा –  “बाहर जब तुम सड़क पर जाओगे तो तुम समझ जाओगे कि भगवान का अस्तित्व नहीं है| अगर भगवान (Bhagwan) होते, तो क्या इतने सारे लोग भूखे मरते? क्या इतने सारे लोग बीमार होते? क्या दुनिया में इतनी हिंसा होती? क्या कष्ट या पीड़ा होती? मैं ऐसे निर्दयी ईश्वर की कल्पना नहीं कर सकता जो इन सब की अनुमति दे”
व्यक्ति ने थोड़ा सोचा लेकिन वह वाद-विवाद नहीं करना चाहता था इसलिए चुप रहा और नाई की बातें सुनता रहा|
नाई ने अपना काम खत्म किया और वह व्यक्ति नाई को पैसे देकर दुकान से बाहर आ गया| वह जैसे ही नाई की दुकान से निकला, उसने सड़क पर एक लम्बे-घने बालों वाले एक व्यक्ति को देखा जिसकी दाढ़ी भी बढ़ी हुई थी और ऐसा लगता था शायद उसने कई महीनों तक अपने बाल नहीं कटवाए थे|
वह व्यक्ति वापस मुड़कर नाई की दुकान में दुबारा घुसा और उसने नाई से कहा – “क्या तुम्हें पता है? नाइयों का अस्तित्व नहीं होता”
नाई ने कहा – “तुम कैसी बेकार बातें कर रहे हो? क्या तुम्हे मैं दिखाई नहीं दे रहा? मैं यहाँ हूँ और मैं एक नाई हूँ| और मैंने अभी अभी तुम्हारे बाल काटे है|”
व्यक्ति ने कहा –  “नहीं ! नाई नहीं होते हैं| अगर होते तो क्या बाहर उस व्यक्ति के जैसे कोई भी लम्बे बाल व बढ़ी हुई दाढ़ी वाला होता?”
नाई ने कहा – “अगर वह व्यक्ति किसी नाई के पास बाल कटवाने जाएगा ही नहीं तो नाई कैसे उसके बाल काटेगा?”
व्यक्ति ने कहा –  “तुम बिल्कुल सही कह रहे हो, यही बात है| भगवान भी होते है लेकिन कुछ लोग भगवान पर विश्वास ही नहीं करते तो भगवान उनकी मदद कैसे करेंगे|”

Moral of Hindi Story
विश्वास ही सत्य है| अगर भगवान पर विश्वास करते है तो हमें हर पल उनकी अनुभूति होती है और अगर हम विश्वास नहीं करते तो हमारे लिए उनका कोई अस्तित्व नहीं|



जिंदगी में खुशियाँ तेरे बहाने से हैं

 पत्नी को शादी के कुछ साल बाद ख्याल आया, कि अगर वो अपने पति को छोड़ कर चली जाए तो पति कैसा महसूस करेगा।

ये विचार उसने कागज पर लिखा

अब मै तुम्हारे साथ और नहीं रह सकती, मै ऊब गयी हूँ तुम्हारे साथ से, मैं घर छोड़ के जा रही हूँ हमेशा के लिए

उस कागज को उसने टेबल पर रखा और जब पति के आने का टाइम हुआ तो उसकी प्रतिक्रिया देखने के लिए  बेड के नीचे छुप गई।

पति आया और उसने टेबल पर रखा कागज पढ़ा कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने उस कागज पर कुछ लिखा और कागज को वहीं तह करके रख दिया

फिर वो खुशी की सीटी बजाने लगा, गीत गाने लगा, डांस करने लगा और कपड़े बदलने लगा। खुश होते हुये उसने अपने फोन से किसी को फोन लगाया और कहा

आज मै मुक्त हो गया”  शायद मेरी मूर्ख पत्नी को समझ गया कि वो मेरे लायक ही नहीं थी, इसलिए आज वो घर से हमेशा के लिए चली गयी,

इसलिए अब मै आजाद हूँ, तुमसे मिलने के लिए, मैं रहा हूँ कपड़े बदल कर तुम्हारे पास, तुम तैयार हो कर मेरे घर के सामने वाले पार्क में अभी जाओ

पति बाहर निकल गया, आंसू भरी आँखों से पत्नी बेड के नीचे से निकली और कांपते हाथों से कागज पर लिखी लाइन पढ़ी

जिसमें लिखा था

बेड के नीचे से पैर दिख रहे हैंबावलीपार्क के पास वाली दुकान से ब्रेड ले कर रहा हूँ तब तक चाय बना लेना

मेरी जिंदगी में खुशियाँ तेरे बहाने से हैं

आधी तुझे सताने से हैं,

आधी तुझे मनाने से हैं




फर्क सिर्फ सोच का होता है

एक शहर में एक धनी व्यक्ति रहता था ।
उसके पास बहुत पैसा था और उसे इस बात पर बहुत घमंड भी था ।
एक बार किसी कारण से उसकी आँखों में इंफेक्शन हो गया ।
आँखों में बुरी तरह जलन होती थी ।

वह डॉक्टर के पास गया लेकिन डॉक्टर उसकी इस बीमारी का इलाज नहीं कर पाया ।
सेठ के पास बहुत पैसा था उसने देश विदेश से बहुत सारे नीम- हकीम और डॉक्टर बुलाए ।
एक बड़े डॉक्टर ने बताया कि आपकी आँखों में एलर्जी है ।
आपको कुछ दिन तक सिर्फ़ हरा रंग ही देखना होगा ।
कोई और रंग देखेंगे तो आपकी आँखों को परेशानी होगी ।

अब क्या था, सेठ ने बड़े बड़े पेंटरों को बुलाया और
पूरे महल को हरे रंग से रंगने के लिए कहा ।
वह बोला- मुझे हरे रंग से अलावा कोई और रंग दिखाई नहीं देना चाहिए ।
मैं जहाँ से भी गुजरूँ, हर जगह हरा रंग कर दो ।

इस काम में बहुत पैसा खर्च हो रहा था लेकिन
फिर भी सेठ की नज़र किसी अलग रंग पर पड़ ही जाती थी
क्योंकि पूरे नगर को हरे रंग से रंगना संभव ही नहीं था,
सेठ दिन प्रतिदिन पेंट कराने के लिए पैसा खर्च करता जा रहा था ।
शहर का एक सज्जन पुरुष वहाँ से गुजर रहा था ।
उसने चारों तरफ हरा रंग देखकर लोगों से कारण पूछा ।

सारी बात सुनकर वह सेठ के पास गया और बोला
सेठ जी आपको इतना पैसा खर्च करने की ज़रूरत नहीं है ।
मेरे पास आपकी परेशानी का एक छोटा सा हल है.
आप हरा चश्मा क्यों नहीं खरीद लेते फिर सब कुछ हरा हो जाएगा ।
सेठ की आँख खुली की खुली रह गयी
उसके दिमाग़ में यह शानदार विचार आया ही नहीं
वह बेकार में इतना पैसा खर्च किए जा रहा था ।

तो मित्रो,

जीवन में हमारी सोच और देखने के नज़रिए पर भी बहुत सारी चीज़ें निर्भर करतीं हैं ।
कई बार परेशानी का हल बहुत आसान होता है,

लेकिन हम परेशानी में फँसे रहते हैं ।




शांति की तलाश

एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कही जा रहे थे । उनके प्रिय शिष्य आनंद ने मार्ग में उनसे एक प्रश्न पूछा -‘भगवान! जीवन में पूर्ण रूप से कभी शांति नहीं मिलती, कोई ऐसा मार्ग बताइए कि जीवन में सदा शांति का अहसास हो ।
बुद्ध आनंद का प्रश्न सुनकर मुस्कुराते हुए बोले,’ तुम्हे इसका जबाब अवश्य देगे किन्तु अभी हमे प्यास लगी है, पहले थोडा जल पी ले । क्या हमारे लिए थोडा जल लेकर आओगे?
बुद्ध का आदेश पाकर आनंद जल की खोज में निकला तो थोड़ी ही दूरी पर एक झरना नजर आया । वह जैसे ही करीब पंहुचा तब तक कुछ बैलगाड़िया वहां आ पहुची और झरने को पार करने लगी । उनके गुजरने के बाद आनंद ने पाया कि झील का पानी बहुत ही गन्दा हो गया था इसलिए उसने कही और से जल लेने का निश्चय किया । बहुत देर तक जब अन्य स्थानों पर जल तलाशने पर जल नहीं मिला तो निराश होकर उसने लौटने का निश्चय किया ।
उसके खाली हाथ लौटने पर जब बुद्ध ने पूछा तो उसने सारी बाते बताई और यह भी बोला कि एक बार फिर से मैं किसी दूसरी झील की तलाश करता हूँ जिसका पानी साफ़ हो । यह कहकर आनंद जाने लगा तभी भगवान बुद्ध की आवाज सुनकर वह रुक गया । बुद्ध बोले-‘दूसरी झील तलाश करने की जरुरत नहीं, उसी झील पर जाओ’ ।
आनन्द दोबारा उस झील पर गया किन्तु अभी भी झील का पानी साफ़ नहीं हुआ था । कुछ पत्ते आदि उस पर तैर रहे थे । आनंद दोबारा वापिस आकर बोला इस झील का पानी अभी भी गन्दा है । बुद्ध ने कुछ देर बाद उसे वहाँ जाने को कहा । थोड़ी देर ठहर कर आनंद जब झील पर पहुंचा तो अब झील का पानी बिलकुल पहले जैसा ही साफ़ हो चुका था । काई सिमटकर दूर जा चुकी थी, सड़े- गले पदार्थ नीचे बैठ गए थे और पानी आईने की तरह चमक रहा था ।

इस बार आनंद प्रसन्न होकर जल ले आया जिसे बुद्ध पीकर बोले कि ‘आनंद जो क्रियाकलाप अभी तुमने किया, तुम्हारा जबाब इसी में छुपा हुआ है । बुद्ध बोले -‘ हमारे जीवन के जल को भी विचारों की बैलगाड़ियां रोज गन्दा करती रहती है और हमारी शांति को भंग करती हैं । कई बार तो हम इनसे डर कर जीवन से ही भाग खड़े होते है, किन्तु हम भागे नहीं और मन की झील के शांत होने कि थोड़ी प्रतीक्षा कर लें तो सब कुछ स्वच्छ और शांत हो जाता है । ठीक उसी झरने की तरह जहाँ से तुम ये जल लाये हो । यदि हम ऐसा करने में सफल हो गए तो जीवन में सदा शान्ति के अहसास को पा लेगे’।




कमियाँ नज़र अंदाज़ करें


एक बार की बात है किसी राज्य में एक राजा था जिसकी केवल एक टाँग और एक आँख थी। उस राज्य में सभी लोग खुशहाल थे क्योंकि राजा बहुत बुद्धिमान और प्रतापी था।

एक बार राजा के विचार आया कि क्यों न खुद की एक तस्वीर बनवायी जाये। फिर क्या था, देश विदेशों से चित्रकारों को बुलवाया गया और एक से एक बड़े चित्रकार राजा के दरबार में आये। राजा ने उन सभी से हाथ जोड़कर आग्रह किया कि वो उसकी एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनायें जो राजमहल में लगायी जाएगी।

सारे चित्रकार सोचने लगे कि राजा तो पहले से ही विकलांग है फिर उसकी तस्वीर को बहुत सुन्दर कैसे बनाया जा सकता है, ये तो संभव ही नहीं है और अगर तस्वीर सुन्दर नहीं बनी तो राजा गुस्सा होकर दंड देगा। यही सोचकर सारे चित्रकारों ने राजा की तस्वीर बनाने से मना कर दिया। तभी पीछे से एक चित्रकार ने अपना हाथ खड़ा किया और बोला कि मैं आपकी बहुत सुन्दर तस्वीर बनाऊँगा जो आपको जरूर पसंद आएगी।

फिर चित्रकार जल्दी से राजा की आज्ञा लेकर तस्वीर बनाने में जुट गया। काफी देर बाद उसने एक तस्वीर तैयार की जिसे देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और सारे चित्रकारों ने अपने दातों तले उंगली दबा ली।

उस चित्रकार ने एक ऐसी तस्वीर बनायीं जिसमें राजा एक टाँग को मोड़कर जमीन पे बैठा है और एक आँख बंद करके अपने शिकार पे निशाना लगा रहा है। राजा ये देखकर बहुत प्रसन्न हुआ कि उस चित्रकार ने राजा की कमजोरियों को छिपा कर कितनी चतुराई से एक सुन्दर तस्वीर बनाई है। राजा ने उसे खूब इनाम दिया।

तो मित्रों, क्यों ना हम भी दूसरों की कमियों को छुपाएँ, उन्हें नजरअंदाज करें और अच्छाइयों पर ध्यान दें। आजकल देखा जाता है कि लोग एक दूसरे की कमियाँ बहुत जल्दी ढूंढ लेते हैं चाहें हममें खुद में कितनी भी बुराइयाँ हों लेकिन हम हमेशा दूसरों की बुराइयों पर ही ध्यान देते हैं कि अमुक आदमी ऐसा है, वो वैसा है। सोचिये अगर हम भी उस चित्रकार की तरह दूसरों की कमियों पर पर्दा डालें उन्हें नजरअंदाज करें तो धीरे धीरे सारी दुनियाँ से बुराइयाँ ही खत्म हो जाएँगी और रह जाएँगी सिर्फ अच्छाइयाँ।

इस कहानी से ये भी शिक्षा मिलती है कि कैसे हमें नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोचना चाहिए और किस तरह हमारी सकारात्मक सोच हमारी समस्यों को हल करती है।



हीरा और काँच


एक राजा का दरबार लगा हुआ था,
क्योंकि सर्दी का दिन था इसलिये
राजा का दरवार खुले में लगा हुआ था.
पूरी आम सभा सुबह की धूप मे बैठी थी ..
महाराज के सिंहासन के सामने…
एक शाही मेज थी…
और उस पर कुछ कीमती चीजें रखी थीं.
पंडित लोग, मंत्री और दीवान आदि
सभी दरबार मे बैठे थे
और राजा के परिवार के सदस्य भी बैठे थे.. ..

उसी समय एक व्यक्ति आया और प्रवेश माँगा..
प्रवेश मिल गया तो उसने कहा
“मेरे पास दो वस्तुएं हैं,
मै हर राज्य के राजा के पास जाता हूँ और
अपनी वस्तुओं को रखता हूँ पर कोई परख नही पाता सब हार जाते है
और मै विजेता बनकर घूम रहा हूँ”..
अब आपके नगर मे आया हूँ

राजा ने बुलाया और कहा “क्या वस्तु है”
तो उसने दोनो वस्तुएं….
उस कीमती मेज पर रख दीं..

वे दोनों वस्तुएं बिल्कुल समान
आकार, समान रुप रंग, समान
प्रकाश सब कुछ नख-शिख समान था.. … ..

राजा ने कहा ये दोनो वस्तुएं तो एक हैं.
तो उस व्यक्ति ने कहा हाँ दिखाई तो
एक सी ही देती है लेकिन हैं भिन्न.

इनमें से एक है बहुत कीमती हीरा
और एक है काँच का टुकडा।

लेकिन रूप रंग सब एक है.
कोई आज तक परख नही पाया क़ि
कौन सा हीरा है और कौन सा काँच का टुकड़ा..

कोई परख कर बताये कि….
ये हीरा है और ये काँच..
अगर परख खरी निकली…
तो मैं हार जाऊंगा और..
यह कीमती हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी मे जमा करवा दूंगा.

पर शर्त यह है क़ि यदि कोई नहीं
पहचान पाया तो इस हीरे की जो
कीमत है उतनी धनराशि आपको
मुझे देनी होगी..

इसी प्रकार से मैं कई राज्यों से…
जीतता आया हूँ..

राजा ने कहा मै तो नही परख सकूगा..
दीवान बोले हम भी हिम्मत नही कर सकते
क्योंकि दोनो बिल्कुल समान है..
सब हारे कोई हिम्मत नही जुटा पा रहा था.. ..

हारने पर पैसे देने पडेगे…
इसका कोई सवाल नही था,
क्योंकि राजा के पास बहुत धन था,
पर राजा की प्रतिष्ठा गिर जायेगी,
इसका सबको भय था..

कोई व्यक्ति पहचान नही पाया.. ..
आखिरकार पीछे थोडी हलचल हुई
एक अंधा आदमी हाथ मे लाठी लेकर उठा..
उसने कहा मुझे महाराज के पास ले चलो…
मैने सब बाते सुनी है…
और यह भी सुना है कि….
कोई परख नही पा रहा है…
एक अवसर मुझे भी दो.. ..

एक आदमी के सहारे….
वह राजा के पास पहुंचा..
उसने राजा से प्रार्थना की…
मै तो जनम से अंधा हू….
फिर भी मुझे एक अवसर दिया जाये..
जिससे मै भी एक बार अपनी बुद्धि को परखूँ..
और हो सकता है कि सफल भी हो जाऊं..

और यदि सफल न भी हुआ…
तो वैसे भी आप तो हारे ही है..

राजा को लगा कि…..
इसे अवसर देने मे क्या हर्ज है…
राजा ने कहा क़ि ठीक है..
तो तब उस अंधे आदमी को…
दोनो चीजे छुआ दी गयी..

और पूछा गया…..
इसमे कौन सा हीरा है….
और कौन सा काँच….?? ..
यही तुम्हें परखना है.. ..

कथा कहती है कि….
उस आदमी ने एक क्षण मे कह दिया कि यह हीरा है और यह काँच.. ..

जो आदमी इतने राज्यो को जीतकर आया था
वह नतमस्तक हो गया..
और बोला….
“सही है आपने पहचान लिया.. धन्य हो आप…
अपने वचन के मुताबिक…..
यह हीरा…..
मै आपके राज्य की तिजोरी मे दे रहा हूँ ” ..

सब बहुत खुश हो गये
और जो आदमी आया था वह भी
बहुत प्रसन्न हुआ कि कम से कम
कोई तो मिला परखने वाला..

उस आदमी, राजा और अन्य सभी
लोगो ने उस अंधे व्यक्ति से एक ही
जिज्ञासा जताई कि तुमने यह कैसे
पहचाना कि यह हीरा है और वह काँच.. ..

उस अंधे ने कहा की सीधी सी बात है मालिक
धूप मे हम सब बैठे है.. मैने दोनो को छुआ ..
जो ठंडा रहा वह हीरा…..
जो गरम हो गया वह काँच…..

जीवन मे भी देखना…..

जो बात बात में गरम हो जाये, उलझ जाये…
वह व्यक्ति “काँच” हैं

और

जो विपरीत परिस्थिति में भी ठंडा रहे…..
वह व्यक्ति “हीरा” है..!!…



मित्रता हो वहाँ संदेह न हो


एक फकीर बहुत दिनों तक बादशाह के साथ रहा बादशाह का बहुत प्रेम उस फकीर पर हो गया। प्रेम भी इतना कि बादशाह रात को भी उसे अपने कमरे में सुलाता। कोई भी काम होता, दोनों साथ-साथ ही करते।

एक दिन दोनों शिकार खेलने गए और रास्ता भटक गए। भूखे-प्यासे एक पेड़ के नीचे पहुंचे। पेड़ पर एक ही फल लगा था। बादशाह ने घोड़े पर चढ़कर फल को अपने हाथ से तोड़ा। बादशाह ने फल के छह टुकड़े किए और अपनी आदत के मुताबिक पहला टुकड़ा फकीर को दिया। फकीर ने टुकड़ा खाया और बोला, ‘बहुत स्वादिष्ट! ऎसा फल कभी नहीं खाया।

एक टुकड़ा और दे दें। दूसरा टुकड़ा भी फकीर को मिल गया। फकीर ने एक टुकड़ा और बादशाह से मांग लिया। इसी तरह फकीर ने पांच टुकड़े मांग कर खा लिए। जब फकीर ने आखिरी टुकड़ा मांगा, तो बादशाह ने कहा, ‘यह सीमा से बाहर है। आखिर मैं भी तो भूखा हूं। मेरा तुम पर प्रेम है, पर तुम मुझसे प्रेम नहीं करते।’.और सम्राट ने फल का टुकड़ा मुंह में रख लिया।

मुंह में रखते ही राजा ने उसे थूक दिया, क्योंकि वह कड़वा था। राजा बोला, ‘तुम पागल तो नहीं, इतना कड़वा फल कैसे खा गए?’ उस फकीर का उत्तर था, ‘जिन हाथों से बहुत मीठे फल खाने को मिले, एक कड़वे फल की शिकायत कैसे करूं? सब टुकड़े इसलिए लेता गया ताकि आपको पता न चले। दोस्तों जहाँ मित्रता हो वहाँ संदेह न हो।




दिल करीब होते हैं


एक हिन्दू सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे. संयासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पूछा; “क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?”

शिष्य कुछ देर सोचते रहे, एक ने उत्तर दिया, “क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !”
“पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है, जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं”, सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया.
कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए.

अंततः सन्यासी ने समझाया…
“जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं. और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते… वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा.
क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं, क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है.”

सन्यासी ने बोलना जारी रखा,” और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं, वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं.”