माँ: ईश्वर का भेजा फरिशता
एक समय की बात है , एक बच्चे
का जन्म होने वाला था. जन्म से कुछ क्षण पहले उसने भगवान् से पूछा : ” मैं इतना
छोटा हूँ, खुद से कुछ कर भी नहीं पाता , भला धरती
पर मैं कैसे रहूँगा , कृपया मुझे अपने पास ही
रहने दीजिये , मैं कहीं नहीं जाना चाहता.”
भगवान् बोले, ” मेरे पास
बहुत से फ़रिश्ते हैं , उन्ही में से एक मैंने
तुम्हारे लिए चुन लिया है, वो तुम्हारा ख़याल रखेगा.
“
“पर आप मुझे बताइए , यहाँ
स्वर्ग में मैं कुछ नहीं करता बस गाता और मुस्कुराता हूँ , मेरे लिए
खुश रहने के लिए इतना ही बहुत है.”
” तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हारे लिए गायेगा और हर रोज़
तुम्हारे लिए मुस्कुराएगा भी . और तुम उसका प्रेम महसूस करोगे और खुश रहोगे.”
” और जब वहां लोग मुझसे बात करेंगे तो मैं समझूंगा कैसे
, मुझे तो उनकी भाषा नहीं आती ?”
” तुम्हारा फ़रिश्ता तुमसे सबसे मधुर और प्यारे शब्दों
में बात करेगा, ऐसे शब्द जो तुमने यहाँ भी नहीं सुने होंगे, और बड़े
धैर्य और सावधानी के साथ तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे बोलना भी सिखाएगा .”
” और जब मुझे आपसे बात करनी हो तो मैं क्या करूँगा?”
” तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करना सिखाएगा, और इस तरह तुम मुझसे बात कर सकोगे.”
“मैंने सुना है कि धरती पर बुरे लोग भी होते हैं .
उनसे मुझे कौन बचाएगा ?”
” तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे बचाएगा , भले ही
उसकी अपनी जान पर खतरा क्यों ना आ जाये.”
“लेकिन मैं हमेशा दुखी रहूँगा क्योंकि मैं आपको नहीं
देख पाऊंगा.”
” तुम इसकी चिंता मत करो ; तुम्हारा
फ़रिश्ता हमेशा तुमसे मेरे बारे में बात करेगा और तुम वापस मेरे पास कैसे आ सकते
हो बतायेगा.”
उस वक़्त स्वर्ग में असीम शांति थी , पर पृथ्वी
से किसी के कराहने की आवाज़ आ रही थी….बच्चा समझ
गया कि अब उसे जाना है , और उसने रोते-रोते भगवान् से
पूछा ,” हे ईश्वर, अब तो मैं
जाने वाला हूँ , कृपया मुझे उस फ़रिश्ते का नाम बता दीजिये ?’
भगवान् बोले, ” फ़रिश्ते
के नाम का कोई महत्व नहीं है , बस इतना
जानो कि तुम उसे “माँ” कह कर
पुकारोगे .”
एक औरत थी, जो अंधी थी, जिसके कारण उसके बेटे को स्कूल में बच्चे चिढाते थे, कि अंधी का बेटा आ गया,हर बात पर उसे ये शब्द सुनने को मिलता था कि "अन्धी का बेटा" . इसलिए वो अपनी माँ से चिडता था .उसे कही भी अपने साथ लेकर जाने में हिचकता था उसे नापसंद करता था.. उसकी माँ ने उसे पढ़ाया..और उसे इस लायक बना दिया की वो अपने पैरो पर खड़ा हो सके.. लेकिन जब वो बड़ा आदमी बन गया तोअपनी माँ को छोड़ अलग रहने लगा.. एक दिन एक बूढी औरत उसके घर आई और गार्ड से बोली..मुझे तुम्हारे साहब से मिलना है जब गार्ड ने अपने मालिक से बोल तो मालिक ने कहा कि बोल दो मै अभी घर परनही हूँ. गार्ड ने जब बुढिया से बोला कि वो अभी नही है.. तो वो वहा से चली गयी..!! थोड़ी देर बाद जब लड़काअपनी कार से ऑफिस के लिए जा रहा होता है.. तो देखता है कि सामने बहुत भीड़लगी है.. और जानने के लिए कि वहा क्यों भीड़ लगी है वह वहा गया तो देखा उसकी माँ वहा मरी पड़ी थी..उसने देखा की उसकी मुट्ठी में कुछ है उसने जब मुट्ठी खोली तो देखा की एक लेटर जिसमे यहलिखा था कि बेटा जब तू छोटा था तो खेलते वक़्त तेरी आँख में सरिया धंस गयी थी और तूअँधा हो गया था तो मैंने तुम्हे अपनी आँखे दे दी थी.. इतना पढ़ कर लड़का जोर-जोर से रोने लगा..उसकी माँ उसके पास नही आ सकती थी.. दोस्तों वक़्त रहते ही लोगो की वैल्यू करना सीखो..माँ-बाप का कर्ज हम कभी नही चूका सकते .. हमारी प्यास का अंदाज़ भी अलग हैदोस्तों,
कभी समंदर को ठुकरा देते है,
तो कभी आंसू तक पी जाते है..!!!"बैठना भाइयों के बीच, चाहे "बैर" ही क्यों ना हो..और खाना माँ के हाथो का, चाहे "ज़हर" ही क्यों ना हो..!!...✔जब भी बड़ो के साथ बैठो तोपरमात्मा का धन्यवाद ,
क्योंकि कुछ लोग
इन लम्हों को तरसते हैं ।
✔जब भी अपने काम पर जाओतो परमात्मा का धन्यवाद करोक्योंकि
बहुत से लोग बेरोजगार हैं ।✔परमात्मा का धन्यवाद कहोजब तुम तन्दुरुस्त हो ,क्योंकि बीमार किसी भी कीमतपर सेहत खरीदने की ख्वाहिशरखते हैं ।✔ परमात्मा का धन्यवाद कहोकी तुम जिन्दा हो ,
क्योंकि मरते हुए लोगों से पूछोजिंदगी कीमत ।दोस्तों की ख़ुशी के लिए तो कई मैसेज भेजते हैं ।देखते हैं परमात्मा के धन्यवाद का ये मैसेज कितने लोग शेयर करते हैं ।द्रौपदी और भीष्मपितामहमहाभारत का युद्ध चल रहा था। भीष्मपितामह अर्जुन के बाणों से घायल हो बाणों से ही बनी हुई एक शय्या पर पड़े हुए थे। कौरव और पांडव दल के लोग प्रतिदिन उनसे मिलना जाया करते थे।एक दिन का प्रसंग है कि पांचों भाई और द्रौपदी चारो तरफ बैठे थे और पितामह उन्हें उपदेश दे रहे थे। सभी श्रद्धापूर्वक उनके उपदेशों को सुन रहे थे कि अचानक द्रौपदी खिलखिलाकर कर हंस पड़ी। पितामह इस हरकत से बहुत आहात हो गए और उपदेश देना बंद कर दिया। पांचों पांडवों भी द्रौपदी के इस व्य्वहार से आश्चर्यचकित थे। सभी बिलकुल शांत हो गए। कुछ क्षणोपरांत पितामह बोले , ” पुत्री , तुम एक सभ्रांत कुल की बहु हो , क्या मैं तुम्हारी इस हंसी का कारण जान सकता हूँ ?”द्रौपदी बोली-” पितामह, आज आप हमे अन्याय के विरुद्ध लड़ने का उपदेश दे रहे हैं , लेकिन जब भरी सभा में मुझे निर्वस्त्र करने की कुचेष्टा की जा रही थी तब कहाँ चला गया था आपका ये उपदेश , आखिर तब आपने भी मौन क्यों धारण कर लिया था ?यह सुन पितामह की आँखों से आंसू आ गए। कातर स्वर में उन्होंने कहा – ” पुत्री , तुम तो जानती हो कि मैं उस समय दुर्योधन का अन्न खा रहा था। वह अन्न प्रजा को दुखी कर एकत्र किया गया था , ऐसे अन्न को भोगने से मेरे संस्कार भी क्षीण पड़ गए थे , फलतः उस समय मेरी वाणी अवरुद्ध हो गयी थी। और अब जबकि उस अन्न से बना लहू बह चुका है, मेरे स्वाभाविक संस्कार वापस आ गए हैं और स्वतः ही मेरे मुख से उपदेश निकल रहे हैं। बेटी , जो जैसा अन्न खाता है उसका मन भी वैसा ही हो जाता है “जीवन के प्रति धन्यवाद – Feeling of Gratitud
दोस्तों! आज gratitude के बारे में बात करते हैं – A feeling of thankfulness. कितने लोग हम में से ऐसे हैं हो सुबह उठते ही परमात्मा का शुक्रिया अदा करते हैं,जीवन के प्रति शुक्रिया अदा करते हैं कि ए मालिक मैं आज जीवित हूँ! हे परमात्मा तेरा शुक्र है कि I am alive! मैं जीवित हूँ और स्वस्थ भी हूँ! कितने लोग ऐसा करते होंगे? क्या आप ऐसा करते हैं?क्या परमात्मा का शुक्रिया करना हमें आता है?क्या हमने आदत डाली हुई है उसका शुक्रिया करने की या जीवन को एक बोझ की तरह ढो रहे हैं? कितने ही लोग आत्म-हत्या करते हैं,क्यों?उनको जीवन एक बोझ लगने लग जाता है! इतना सुन्दर दिया हुआ जीवन,इतना खूबसूरत जीवन उनको बोझ लगता है,शायद उन्होंने जीवन में gratitude,thankfulness को जाना ही नहीं!इसलिए दोस्तों!जीवन में इस भावना को लेकर आना है,इस व्यवहार को लेकर आना है – thankfulness.Be thankful to the creator,to everybody whosoever does something good for you. इतना सुन्दर उसने जीवन दिया है, इस जीवन को संभालने के लिए इतने अच्छे दोस्त दिए हैं,इतना सुन्दर परिवार दिया है,माँ-बाप दिए हैं,कितनी बार हम इन सबके प्रति धन्यवाद अदा करते हैं? कुछ चीज़ें हमें मिल जाती हैं तो हम उन्हें for-granted लेना शुरू कर देते हैं,यह मानव स्वभाव है! हमारी दृष्टि केवल उन बातों पर रहती है जहाँ पर हमें कुछ नहीं मिला होता,कुछ कमी होती है,हमारे मन की पूरी कार्यवाही कमी को पूरी करने पर ही निर्धारित है!आपके जीवन में 999 चीज़ें अच्छी होँ और एक भी गलत हो, आप देखेंगे आपका मन बार-बार उस 1 चीज़ के बारे में सोचता है, 999 चीज़ों को वो भूल जाता है, यहीं से हमारे दुखों की शुरुयात होती है!पहले उन 999 चीज़ों के लिए शुकराना तो कर लें,कोई एक चीज़ कुदरत ने नहीं दी,पता नहीं उसके पीछे क्या कारण होगा? इसलिए जो मिला है, उसके लिए शुकराना करें – A feeling of thankfulness is very very important particularly for this life. अगर आप अपने जीवन में खुशियाँ चाहते हैं, आनंद चाहते हैं तो thankfulness की भावना को लेकर आईये,gratitude को लेकर आईये!जीवन के प्रति शुकराना लेकर आईये, छोटी छोटी बात के लिए सामने वाले को जताइये, उसको thanx कीजिये!देखिये आप घर से बाहर निकलते हैं, मान लीजिए आपका purse घर से बाहर निकलते गिर जाता है,आपकी पत्नी पीछे खड़ी हुयी है,बच्चा पीछे खड़ा हुआ है,उसने देख लिया और immediately purse आपको उठाकर दे दिया, क्या आप उनको thanx करते हैं? अगर नहीं करते तो विचार कीजियेगा कि अपनी पत्नी है, अपना बच्चा है, कहीं हमने उन्हें for-granted तो नहीं ले लिया? सदा सदा के लिए मान लिया कि अपने हैं इसलिए thanx करने की क्या जरुरत है? अपना ही तो है!अपने अपनों को धन्यवाद दीजिए. इससे रिश्तों में हरियाली बनी रहेगी.और अगर यही purse हमारा गिरा होता और किसी stranger ने हमें उठा के दिया होता तो हमारे भाव क्या होते? हमने उसको कई बार शुकराना किया होता क्योंकि उसमे हमारा ATM card है,उसमे हमारा purse है, उसमे चाबियाँ हैं और पता नहीं क्या क्या है, इस तरह का purse खो जाता,पता नहीं हमें कितने दुःख उठाने पड़ते, जिसने दिया है उसका हम शुकराना करें!जैसे हमारा strangers के प्रति thankfulness का भाव होता है वैसे ही उन लोगों के प्रति भी thankfulness का भाव लायें जो हमारे अपने हैं! thankfulness का भाव बहुत ज़रुरी है,घर में अपनी पत्नी के लिए, अपने बच्चे के लिए, अपने माता-पिता के लिए, बाकी रिश्तेदारों के लिए, इसीप्रकार office में अपने colleagues के लिए, अपने sub-ordinates के लिए,अपने boss के प्रति हम thankfulness का भाव करते ही हैं लेकिन नीचे वालों के लिए भी हम अपना thankfulness का भाव बनाए रखें!खाना खाते जिन्होंने खाना बनाया है, उनके प्रति thankfulness!देखिये जीवन में इतने छोटे छोटे changes इतना बड़ा बदलाव ला सकते हैं,आप thanx कहकर देखिये कितना दिल खिल जाता है,कोई आपको thanx बोले कितनी खुशी महसूस होती है, देखिये plastic वाला thankfulness नही, plastic smile वाला thanks हम कह देते हैं “thankyou”,बड़ा फर्क है,एक खूबसूरत सी smile के साथ दिल खोलकर कह के देखिये “thank you”, बहुत फर्क होता है, it will bring a lot of change in your life,बहुत कुछ बदल जाएगा,बहुत कुछ सुन्दर हो जाएगा,जितना अब तक है उससे और भी सुन्दर हो जाएगा!
🎇फुल स्टॉप लगाने के लिए धारणाएं:-
1- ड्रामा में जो कुछ हो रहा है वह सब
कल्याणकारी है, एक्यूरेट हो रहा है.
संगमयुग है ही अच्छे से अच्छा.
2- छोटी बात को बड़ा नहीं,
बड़ी बात को छोटा बनाओ.
3- बनी बनाई बन रही है,
नथिंग न्यू की स्मृति में रहो.
4- रूप को न देख रूह को देखने का अभ्यास
करें.
5- दूसरों को न देखो,
सबका अपना-अपना पार्ट है,
सभी अपना-अपना भाग्य बना रहे हैं.
6- अपने विचारों की गति को धीमा और महान
बनाएं.
7- अनुमान की बीमारी,
परचिन्तन, परदर्शन, परमत से मुक्त रहकर
अन्तर्मुखता को बढ़ाते रहें
8- आत्मिक स्थिति में रहने व आत्मिक दृष्टि
का अभ्यास करें.
9- सर्व के प्रति शुभ भावना व शुभ कामना बनी
रहे.
10- मनसा, वाचा, कर्मणा,
सम्बन्ध-संपर्क में पवित्रता को बढ़ाते
रहें.
11- आत्मविश्वास के साथ सत्यता की शक्ति को
साथ रखें.
12- ज्ञान, गुण, शक्तियों का फुल
स्टॉक रहे तो सहज ही फुल स्टॉप लगा सकते हैं.
13- बाबा मेरे साथ है,
अपने सारे बोझ बाबा को दे दो,
बाबा को यूज करो.
14- श्रेष्ठ स्मृति रहे कि अब घर चलना है, फिर राज्य में आना है तो पास्ट भूल जाएगा.
15- करावनहार बाप है,
सेवा बाबा को समर्पित करें.
16- एकांत में बैठ अपने आपसे व बाबा से बातें
कर आत्मा में बल भरें
17- याद रहे कि बात बड़ी नहीं,
बाप बड़ा है.
18- तीन बिंदियों को याद करें. मैं आत्मा
बिंदी, बाबा बिंदी और ड्रामा बिंदी.
19- वर्तमान में रहें और परमात्म प्राप्तियों
को याद करें.
20- मैं महान आत्मा हूँ,
मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ,
मैं मन का मालिक हूँ,
सदा इस नशे में रहें
21- मैं विश्व की स्टेज पर पार्ट बजा रहा हूँ,
सारे विश्व की आत्माएं मुझे देख रही है.
22- आवश्यकता से अधिक इच्छाओं का त्याग करें.
23- बाबा को साथी बनाएं,
साक्षीपन की स्थिति बनाए रखें.
24- दिन में पांच बार अपने फरिश्ते व देवताई
स्वरूप को देखें.
25- कर्म करते बार बार ड्रिल करते रहें.
26- अपने मन को समझाएं कि परमात्मा से
अतीन्द्रिय सुख का अनुभव अभी नहीं किया तो
अपने मन को समझाएं कि परमात्मा से अतीन्द्रिय सुख
का अनुभव अभी नहीं किया तो
कब करेंगे.
27- अमृतवेले को शक्तिशाली बनाएं,
ट्रैफिक कंट्रोल भी मिस न करें.
28- मुरली के विभिन्न पॉइंट्स पर मनन चिंतन कर
बुद्धि को हल्का रखें.
29- मनसा सेवा द्वारा सकाश देने में मन को
बिजी रखने के अभ्यासी बनें.
30- डॉट और
नॉट की स्मृति रहे.
👌 लाजवाब लाईन👌
एक बार इंसान ने कोयल से कहा
"तूं काली ना होती तो
कितनी अच्छी होती"
सागर से कहा:-
"तेरा पानी खारा ना होता तो
कितना अच्छा होता"
गुलाब से कहा:-
"तुझमें काँटे ना होते तो
कितना अच्छा होता"
तब तीनों एक साथ बोले:-
"ए इंसान अगर तुझमें
दुसरो की कमियाँ देखने की आदत
ना होती तो तूं कितना अच्छा होता....
*श्रेष्ठता जन्म से नही आती,*
*गुणों के कारण निर्मित होती है*.
*दूध- -दही- -छाछ- -घी**-
*सब एक ही कुल के होते हुए भी*.'
*सब के मूल्य अलग अलग होते है*
जीवन क्या है?
जिंदगी एक रंगमंच है और हम लोग इस रंगमंच के कलाकार | सभी लोग जीवन को अपने- अपने नजरिये से देखते है| कोई कहता है जीवन एक खेल है ।
कोई कहता है जीवन ईश्वर का दिया हुआ उपहार है , कोई कहता है जीवन एक यात्रा है , कोई कहता है जीवन एक दौड़ है और बहुत कुछ ।
मनुष्य का जीवन एक प्रकार का खेल है,और मनुष्य इस खेल का मुख्य खिलाडी है ।यह खेल मनुष्य को हर पल खेलना पड़ता है|इस खेल का नाम है(विचारों का खेल)”|
इस खेल में मनुष्य को दुश्मनों से बचकर रहना पड़ता है|मनुष्य अपने दुश्मनों से तब तक नहीं बच सकता जब तक मनुष्य के मित्र उसके साथ नहीं है|मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र “विचार है,और उसका सबसे बड़ा दुश्मन भी विचार ही है ।मनुष्य के मित्रों को सकारात्मक विचार कहते है और मनुष्य के दुश्मनों को नकारात्मक विचार कहा जाता है|
मनुष्य दिन में 60, 000 से 90, 000 विचारों के साथ रहता है|यानि हर पल मनुष्य एक नए दोस्त या दुश्मन का सामना करता है|मनुष्य का जीवन विचारों के चयन का एक खेल है|इस खेल में मनुष्य को यह पहचानना होता है कि कौनसा विचार उसका दुश्मन है और कौनसा उसका दोस्त, और फिर मनुष्य को अपने दोस्त को चुनना होता है|
हर एक दोस्त अपने साथ कई अन्य दोस्तों को लाता है और हर एक दुश्मन अपने साथ अनेक दुश्मनों को लाता है|इस खेल का मूल मंत्र यही है कि मनुष्य जब निरंतर दुश्मनों को चुनता है तो उसे इसकी आदत पड़ जाती है और अगर वह निरंतर दोस्तों को चुनता है, तो उसे इसकी आदत पड़ जाती है|
जब भी मनुष्य कोई गलती करता है और कुछ दुश्मनों को चुन लेता है तो वह दुश्मन, मनुष्य को भ्रमित कर देते है और फिर मनुष्य का स्वंय पर काबू नहीं रहता और फिर मनुष्य निरंतर अपने दुश्मनों को चुनता रहता है|
मनुष्य के पास जब ज्यादा मित्र रहते है और उसके दुश्मनों की संख्या कम रहती है तो मनुष्य निरंतर, इस खेल को जीतता जाता है| मनुष्य जब जीतता है तो वह अच्छे कार्य करने लगता है और सफलता उसके कदम चूमती है, सभी उसकी तारीफ करते है और वह खुश रहता है|
लेकिन जब मनुष्य के दुश्मन, मनुष्य के मित्रो से मजबूत हो जाते है, तो मनुष्य हर पल इस खेल को हारता जाता है और निराश एंव क्रोधित रहने लगता है|
मनुष्य को विचारों के चयन में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि मनुष्य के दुश्मन, मनुष्य को ललचाते है और मनुष्य को लगता है कि वही उसके दोस्त है|जो लोग इस खेल को खेलना सीख जाते है वे सफल हो जाते है और जो लोग इस खेल को समझ नहीं पाते वे बर्बाद हो जाते है| इस खेल में ज्यादातर लोगों कि समस्या यह नहीं है कि वे अपने दोंस्तों और दुश्मनों को पहचानते नहीं बल्कि समस्या यह है कि वे दुश्मनों को पहचानते हुए भी उन्हें चुन लेते है|
ईश्वर (या सकारात्मक शक्तियाँ), मनुष्य को समय-समय पर कई तरीकों से यह समझाते रहते है कि इस खेल को कैसे खेलना है लेकिन यह खेल मनुष्य को ही खेलना पड़ता है| जब मनुष्य इसमें हारता रहता है और यह भूल जाता है कि इस खेल को कैसे खेलना है तो ईश्वर फिर उसे बताते है कि इस खेल को कैसे खेलना है|
यही तो जीवन है- नरेंद्र दामोदर दास मोदी
याद रखें ये 1⃣0⃣ बातें जब आप उदास और निराशा हो तो !!
.1⃣. वक्त सारे घाव भर देता है। हर चीज को वक्त (Time) दिजिये।
2⃣. जीवन सुलझा होता है इसे उलझाएं नहीं, हर कर्म को एक एक करके करो।
3⃣ कुछ भी उतना बुरा (Bad) नहीं है जितना कि दिखता है, इसलिए बूरा सोचना बंद करें।
4⃣. मौके हर जगह हैं बस आप उन्हे ढूंढो (Search)।
5⃣अगर आपको अपने बारे में कुछ पसंद नहीं है तो
उसे आप कभी भी बदल सकते हैं।
6⃣ असफलताएं और गलतियां आशीर्वाद और वरदान हैं,
यह जितने मिले उतना अच्छा है।
7⃣. जाने दो यारों वाला ऐटिट्यूड (Attitude) अपनाएं, आप हमेशा खुश रहेंगे।
8⃣ ये पूरी सृष्टि हमेशा आपके पक्ष में (Favour) काम करती है न की विरोध में ऐसा सोचोगे तभी आगेबढ़ोगे।
9⃣हर अगला दिन आपके लिए नयी उम्मीदों का भण्डार लेकर आता है, और फिर से डटकर हिम्मत और मेहनत से अपना काम करो
1⃣0⃣ दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है, जो आपकी मदद कर सकते हैं और आपको प्रेरित कर सकते हैं। बस कौन अच्छा है यह हमें देखना है।
सद्व्यहार का अचूक अस्त्र एक राजा ने एक दिन स्वप्न देखा कि कोई परोपकारी साधु उससे कह रहा है कि बेटा! कल रात को तुझे एक विषैला सर्प काटेगा और उसके काटने से तेरी मृत्यु हो जायेगी। वह सर्प अमुक पेड़ की जड़ में रहता है, पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेने के लिए वह तुम्हें काटेगा। प्रातःकाल राजा सोकर उठा और स्वप्न की बात पर विचार करने लगा। धर्मात्माओं को अक्सर सच्चे ही स्वप्न हुआ करते हैं। राजा धर्मात्मा था, इसलिए अपने स्वप्न की सत्यता पर उसे विश्वास था। वह विचार करने लगा कि अब आत्म- रक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए? सोचते- सोचते राजा इस निर्णय पर पहुँचा कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई हथियार इस पृथ्वी पर नहीं है। उसने सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बदल देने का निश्चय किया। संध्या होते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगन्धित जलों का छिड़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह- जगह रखवा दिये और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई उसे किसी प्रकार कष्ट पहुँचाने या छेड़- छाड़ करने का प्रयत्न न करे। रात को ठीक बारह बजे सर्प अपनी बाँबी में से फुसकारता हुआ निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया। वह जैसे- जैसे आगे बढ़ता गया, अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देख- देखकर आनन्दित होता गया। कोमल बिछौने पर लेटता हुआ मनभावनी सुगन्ध का रसास्वादन करता हुआ, स्थान- स्थान पर मीठा दूध पीता हुआ आगे बढ़ता था। क्रोध के स्थान पर सन्तोष और प्रसन्नता के भाव उसमें बढ़ने लगे। जैसे- जैसे वह आगे चलता गया, वैसे ही वैसे उसका क्रोध कम होता गया। राजमहल में जब वह प्रवेश करने लगा तो देखा कि प्रहरी और द्वारपाल सशस्त्र खड़े हैं, परन्तु उसे जरा भी हानि पहुँचाने की चेष्टा नहीं करते। यह असाधारण सौजन्य देखकर सर्प के मन में स्नेह उमड़ आया। सद्व्यवहार, नम्रता, मधुरता के जादू ने उसे मन्त्र- मुग्ध कर लिया था। कहाँ वह राजा को काटने चला था, परन्तु अब उसके लिए
अपना कार्य असंभव हो गया। हानि पहुँचाने के लिए
आने वाले शत्रु के साथ जिसका ऐसा मधुर व्यवहार है, उस धर्मात्मा राजा को काटूँ तो किस प्रकार काटूँ? यह प्रश्न उससे हल न हो सका। राजा के पलंग तक जाने तक सर्प का निश्चय पूर्ण रूप से बदल गया। सर्प के आगमन की राजा प्रतीक्षा कर रहा था। नियत समय से कुछ विलम्ब में वह पहुँचा। सर्प ने राजा से कहा- ‘हे राजन्! मैं तुम्हें काटकर अपने पूर्व जन्म का बदला चुकाने आया था, परन्तु तुम्हारे सौजन्य और सद्व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया। अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूँ। मित्रता के उपहार स्वरूप अपनी बहुमूल्य मणि मैं तुम्हें दे रहा हूँ। लो इसे अपने पास रखो।’ इतना कहकर और मणि राजा के
सामने रखकर सर्प उलटे पाँव अपने घर वापस चला गया। भलमनसाहत और सद्व्यवहार ऐसे प्रबल अस्त्र हैं, जिनसे बुरे- से स्वभाव के दुष्ट मनुष्यों को भी परास्त होना पड़ता है...!!!" "भाग्य" के दरवाजे पर सर पीटने से बेहतर है, "कर्मो" का तूफ़ान पैदा करे सारे दरवाजे खुल जायेंगे.!